Wednesday, March 14, 2018

गोरखपुर का इतिहास आखिर क्यों बदला......?

गोरखपुर का इतिहास आखिर क्यों बदला......?


गणेश चन्द पाण्डेय
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उपचुनाव में लोकल मुद्दे रहते हैं हावी - मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो इतिहास गोरखपुर में विगत पांच लोकसभा चुनावों में लिखा था वो आखिर क्यों बदल गया ..? क्या उनकी लोकप्रियता कम हो गयी ...? क्या सिर्फ एक मात्र कारण ये मान लेना उचित होगा कि सभी विपक्षीय पार्टियां एक हो गयी थीं ? या फिर ये मान लिया जाय कि भाजपा कार्यकर्ता वोभर कॉन्फिडेंस के शिकार हो गए ? गोरखपुर और फूलपुर के जो नतीजे आये वो ना सिर्फ एक उपचुनाव का नतीजा था बल्कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के भी सम्मान से जुड़ा हुआ था । क्योंकि दोनों ने इस लोकसभा चुनाव को भारी मतों से जीते थे और उपचुनाव में पूरे देश की नजर इन दोनों सीटों पर टिकी हुई थी ।

अगर इस हार की समीक्षा किया जाय तो बहुत ज्यादे कारण गिनाए जा सकते हैं लेकिन मेरे नजरों में एक जो महत्वपूर्ण कारण नजर आया वो सभी कारणों पर भी भारी है । 29 साल तक जिस सीट पर गोरक्षपीठाधीश्वर व भाजपा का राज रहा हो उस चुनाव को जितना अपने आप में ही एक चुनौती होती है । लेकिन इस चुनौती को सभी विपक्षीय पार्टियां एक होकर सहर्ष स्वीकार की और जीत में बदल लिया । खैर अगर देखा जाए तो गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके कार्यकर्ता कंही ना कंही वोभर कांफिडेंस के शिकार हो गए । नही तो जिस सीट पर योगी आदित्यनाथ लाखों मतों से सदैव विजयी होते रहे उसे बदल पाना नामुमकिन था और यही भाजपा कार्यकर्ताओं की सोच एक नया इतिहास लिखने के लिए विपक्षियों को मौका दे दिया । 

जंहा एक तरफ भाजपा को हराने के लिए सभी विपक्षीय पार्टी एक जुट हो रही थी वंही भाजपा कार्यकर्ता शायद सो रहे थे । जमीनी स्तर पर कंही जनसंपर्क ही नही किया । वंही वर्तमान में मतदाता भी पहले से कंही ज्यादे जागरूक हुए हैं । भाजपा कार्यकर्ता तो सिर्फ योगी के चेहरे को आगे कर दिया और समझ बैठे की मुख्यमंत्री को कौन हारा सकता है ?...उफ़्फ़फ़फ़फ़ ये वोभर कांफिडेंस । किसी भी कार्य में वोभर कांफिडेंस ले डूबता है और माननीय मुख्यमंत्री ने भी माना है कि हार कि एक वजह वोभर कांफिडेंस भी है ।

सोशल मीडिया पर हावी, जमीनी स्तर पर फुस्स

गोरखपुर या फूलपुर लोकसभा उपचुनाव की अगर बात करें तो भाजपा कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर तो हावी रहे लेकिन जमीनी स्तर पर पूरी तरह से चूक गए । भाजपाईयों ने ये सोचा ही नही कि एक बड़ा तबका है जो इन सोशल मीडिया के बारे में आज भी नही जानता और उन्होंने ही इस इतिहास को बदलने में अपनी अहम भूमिका निभाई । जंहा एक तरफ विपक्ष के कार्यकर्ता चाहें वो क्षेत्रीय नेता हों या अपने पार्टी के ब्लाक अध्यक्ष वो सब एक जुट हो करके गांव से लगायत ब्लाक स्तर और विधानसभा से लगायत जिले स्तर तक घर घर लोगों से सम्पर्क किये । जिसका परिणाम आज हम सबके सामने है । वंही अगर भाजपा कार्यकर्ताओं की बात करें तो प्रत्येक कार्यकर्ता चाहे वो ब्लाक स्तर का अध्यक्ष ही क्यों ना हो ....सिर्फ बड़े नेताओं के आगे पीछे फोटो खिंचवाने और सोशल मीडिया पर अपडेट करने और करवाने में ही लगे रहे । अगर ये थोड़ा भी चले होते तो शायद योगी को उनके गृह जनपद में यूँ हार का मुंह नही देखना पड़ता । 

मैं भी गोरखपुरवासी हूँ और मेरा भी घर शहर और गांव दोनों जगह है । इस चुनाव में लगभग दो - तीन बार विपक्षीय कार्यकर्ता घर पर पहुंचे और अपनी बात रखी ...लेकिन वंही भाजपा कार्यकर्ताओं के दर्शन दुर्लभ हो गए क्योंकि वो अपने क्षेत्र को छोड़ बड़े बड़े नेताओं के आगे पीछे लगे हुए थे ...और फ़ोटो को सोशल साइट्स जैसे फेसबुक और व्हाट्सएप पर शेयर करने में लगे रह गए । जो इन्हें उन लोगों से दूर कर दिया जो इनकी बाट जोह रहे थे । 

विपक्षियों की एक जुटता भी हार का बना कारण

कहते हैं कि एक पतली लकड़ी को आसानी से कोई भी तोड़ सकता है लेकिन जब कई पतली पतली लकड़ियों की एक कर दिया जाए तो उसको तोड़ने के लिए अधिक बल लगाना पड़ता है और इसी नीति को सपा ने अपनायी और सभी छोटी बड़ी पार्टियों को एक करने में लग गयी । चुनाव का समय जैसे जैसे नजदीक आती गयीं । धीरे धीरे सभी विपक्ष नेताओं बसपा, निषाद पार्टी, पीस पार्टी आदि ने सपा को समर्थन दे दिया । जिससे सपा और मजबूत हो गयी और इसे तोड़ने के लिए अधिक बल की जरूरत चाहिए था जो जनता के बीच में ही जा कर भाजपा को मिल पाती । जो भाजपा कार्यकर्ता हांसिल करने में विफल रहे । जिसका परिणाम आज सामने है । वंही एक टीवी साक्षत्कार में माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी माना कि उपचुनाव लोकल मुद्दों पर लड़ा जाता है । जो आगामी चुनाव के लिए एक सबक है और ये नतीजा बहुत कुछ सीखा गया । मुख्यमंत्री ने यंहा तक कहा कि वोभर कांफिडेंस भी हार का एक कारण बना ।

यंहा इस हार जीत के मूल्यांकन में मैं जातिय समीकरण को नही उठा रहा हूँ क्योंकि मुझे नही लगता कि ये कारण महत्वपूर्ण है । अगर भाजपा कार्यकर्ताओं ने जमीनी स्तर पर कुछ किया होता तो ही कुछ लिखना उचित होता । वैसे हम सब जान भी रहे हैं कि जातीय समीकरण की दृष्टि से विपक्ष हावी रही और उसमें सेंधमारी नही हो पाई ।





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