Wednesday, March 28, 2018

देश के हर एक नागरिक को ये वीडियो देखना जरूरी है ।

देश के हर एक नागरिक को ये वीडियो देखना जरूरी है । 
गणेश चन्द पाण्डेय
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पूरा वीडियो अवश्य देखें ।

Sunday, March 25, 2018

जब सरकारी शौचालय बन जाये स्टोर रूम

स्वच्छता मिशन को मुँह चिढ़ा रहें ओडीएफ शौचालय

गणेश चन्द पाण्डेय
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■कहीं समान तो कंही पुआल रखने का अड्डा बना ओडीएफ शौचालय
■विचारों में परिवर्तन से ही होगा देश स्वच्छ
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हम सबने फ़िल्म निर्देशक नारायण सिंह के निर्देशन में बनी फ़िल्म 'टॉयलेट: एक प्रेम कथा' अवश्य देखी होगी । जो देश में चल रहे स्वच्छता मिशन पर आधारित है । जिसमें समाज के उन पहलुओं को दिखाया गया है । जिससे सरकार को आये दिन दो चार होना पड़ता है । फ़िल्म के नायक अक्षय कुमार जब अपनी पत्नी के लिए शौचालय का निर्माण कराना चाहते हैं तो उनके सामने रीति रिवाज के साथ समाज भी अड़चन के रूप में सामने खड़ा हो जाता है । वंही सिस्टम से लड़ने से लगायत नायक नायिका फ़िल्म में समाज व समाज द्वारा बनाये गए रीति रिवाज से लड़ते हुए दिखाई देते हैं । अंततः उनका सपना पूरा होता है और सरकारी सिस्टम, समाज के रीति रिवाजों पर विजय पा लेते हैं और शौचालय का सपना सच हो जाता है । फ़िल्म में अक्षय कुमार एक टीवी एंकर को दे रहे इंटरव्यू में एक संवाद बोलते हैं जिसपर गौर करने लायक है । अक्षय कुमार बोलते हैं कि सरकार ने तो शौचालय बनवा दिया लेकिन इसका इस्तेमाल कैसे करना है, नही समझाया ?

आज पूरे देश में खुले में शौचमुक्त भारत के लिए अभियान छिड़ा है । लेकिन ये कंहा तक सार्थक हो रहा है ? ये एक महत्वपूर्ण सवाल है । देखा जाए तो सरकार पूरी कोशिश कर रही है कि समय सीमा  के भीतर ये लक्ष्य प्राप्त कर ले । लेकिन जबतक ग्रामीण इसमें सहयोग नही करेंगें और अपने आदतों व विचारों में परिवर्तन नही लाएंगे तब तक इस लक्ष्य को प्राप्त करना आसान नही है ।
विगत दिनों उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जनपद के भटहट विकास खण्ड के भ्रमण के दौरान मुझे कुछ ऐसा नजारा मिला जो मुझे आश्चर्य चकित कर दिया । वैसे ये मामला कोई नया नही है लेकिन सरकार की योजनाओं को ग्रामीण किस प्रकार से उपयोग में लाते हैं और सरकारी  कर्मचारी अपना कार्य कंहा तक ईमानदारी से पूरा करते हैं, इसे लिखना मैं जरूर समझा क्योंकि जागरूकता सबसे ज्यादे जरूरी है । गोरखपुर जनपद जो मुख्यमंत्री का गृह जनपद भी है । पूरे जनपद व ब्लाक को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) करने की तैयारी जोरों पर है । गांवों को जल्दी जल्दी ओडीएफ घोषित किया जा रहा है । लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है । वैसे उच्च अधिकारियों के दबाव के चलते विकास खण्ड में शौचालय बनवाने का कार्य प्रगति पर है, लेकिन ब्लाक कर्मचारी व प्रधान शायद ये भूल गए कि इसका सख्ती से इस्तेमाल करना भी ग्रामीणों को सिखाना होगा । फिलहाल कर्मचारियों के ऐसा ना करने से आज ग्रामीण शौचालयों का इस्तेमाल घरेलू समान, पुआल रखने व दुकान खोलने आदि के प्रयोग में ला रहे हैं ।

महात्मा गांधी जी ने देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई थी और उनकी इच्छा भी थी कि भारत देश स्वच्छ व निर्मल हो । इसी को ध्यान में रखकर 2 अक्टूबर 2014 गांधी जयंती पर मोदी सरकार ने देश को स्वच्छ बनाने के लिए स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अंतर्गत खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) के लिए गांव - गांव, घर - घर शौचालय बनाने का मुहिम चलाया । जिसके अंतर्गत जनपद से लेकर के प्रत्येक ब्लाक के प्रत्येक गांव के घर घर शौचालय बनाये जा रहे हैं । वंही समय सीमा के भीतर लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ब्लाक के कर्मचारी लगे हुए हैं । शौचालय सम्बंधित जानकारी भी दी जा रही है लेकिन जो हाल भटहट ब्लाक का है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि बन रहे शौचालय स्वच्छता मिशन को मुँह चिढ़ा रहे हैं । गांव में शौचालय चेक किया गया तो पाया की किसी ने शौचालय के आगे पुआल आदि रख दी, तो किसी ने अपने शौचालय में घरेलू सामान व टूटे दरवाजे से भर दिए ।

भटहट विकास खण्ड के ग्रामसभा फुलवरिया के बखरैति टोला जंहा पर ऐसा नजारा देखने को मिला जो स्वच्छता मिशन की धज्जियां उड़ा रहा है । इस गांव में कुछ ऐसे शौचालय दिखे जंहा एक शौचालय के सामने पुआल तो वंही दूसरे शौचालय में घरेलू सामान व टूटा हुआ दरवाजा आदि रखा गया है । वंही ब्लाक के कर्मचारियों द्वारा इसको ओडीएफ घोषित भी कर दिया गया है । जबकि नियमतः उसी गांव को ओडीएफ घोषित किया जा सकता है जंहा के प्रत्येक व्यक्ति शौचालय का प्रयोग करता हो । शौचालयों में घरेलू सामान आदि जंहा रखा जा रहा है वंही बिना जांचे ब्लाक के अधिकारियों द्वारा ओडीएफ घोषित कर देना कंहा तक उचित है ? इस सम्बंध में कुछ कहने की जरूरत नही है क्योंकि सरकारी पैसों का किस प्रकार से प्रयोग में लाया जाता है । हम सब जानते हैं ।

साथ ही एक अन्य पहलू पर भी विचार करना अनिवार्य है । सबसे महत्वपूर्ण सवाल : आखिर सरकार इतनी योजनाएं किसके लिए लाती है ? इस प्रश्न का आसानी से जबाब कोई भी दे सकता है - देश और देश के प्रत्येक नागरिक के लिए । हां ...यही सही जबाब है । फिर हम सब क्यों स्वयं के साथ अपने आसपास के लोगों को जागरूक नही करते ? हम ये भी अच्छी तरह से जानते हैं कि सरकार जो सुविधाएं , योजनाएं हम सब के लिए लागू करती है...उसपर व्यय होने वाली धनराशि भी हम लोगों के जेबों से ही जाती है । फिर भी योजना जब हमारे दरवाजे पर आती है तो बस उसका गलत तरीके से उपयोग में लाते हैं । सरकार अगर देश को स्वच्छ करने के प्रयास में है तो उसके इस कार्य में हमारा कंहा तक सहयोग है ? इसका भी मूल्यांकन हमको ही करना है । अगर सरकार के द्वारा बनाये गए शौचालयों का उपयोग हम सब समान रखने, दुकान खोलने या अन्य किसी कार्य में लाते हैं तो सरकार की धनराशि का कहीं ना कंही दुरुपयोग हम कर रहे हैं । हमें स्वयं जागरूक होना पड़ेगा और सहयोग करना पड़ेगा । 

मेरे एक दोस्त अभी हाल ही में जापान की शैर पर गए हुए थे । जब वो वंहा पहुंचें तो उनकी आंखें खुली की खुली रह गयी । उन्होंने अपने अनुभव बांटते हुए बताया कि यंहा हर तरफ स्वच्छता ही दिख रही है । कंही भी गंदगी का नामो निशान नही है । वंही शांति भी कमाल का है ना ही गाडियों के हॉर्न की आवाज सुनाई देती है और ना ही लोगों के शोरगुल । उन्होंने एक और बात भी कही मुझसे कि जापान देश की तरह स्वच्छ बनने में अपने देश को अभी काफी वर्ष लगेंगे । जरा सोचिए ! हम सब कितने पीछे हैं । 70 वर्षों में जंहा अन्य देश आसमान की बुलंदियों को छू रहे हैं वंही आज भी हम सब घिसे पिटे दिन गुजारने में लगे हैं । सरकार इस देश को स्वच्छ बनाने के लिए पहला कदम उठाया है और इस कदम के साथ जब तक हम सब कदम नही बढ़ाएंगे ...तब तक देश को स्वच्छ और निर्मल बना पाना नामुमकिन होगा ।

खैर ! वंही जब उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जनपद के भटहट ब्लाक के एडीओ पंचायत जगवंश कुशवाहा से ब्लाक में चलाए जा रहे ओडीएफ के सम्बंध में जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि पूरे भटहट ब्लाक में 35 हजार शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया है । जिसमें से 80 प्रतिशत शौचालयों का निर्माण कार्य हो चुका है और 20 गाँव ओडीएफ घोषित किये जा चुके हैं । जिसमें से एक बखरैति गांव भी है । जब बखरैति गांव में शौचालयों की दुर्दशा और ग्रामीणों द्वारा उपयोग में ना लाने की बात कही गयी तो उन्होंने बताया कि जब तक निगरानी गांव में की गई तब तक सभी ग्रामीण शौचालय का उपयोग करते हुए मिले । देखिए ! जब तक ग्रामीण अपने विचारों में परिवर्तन नही लाते हैं तब तक इससे मुक्ति नही मिल सकती । संज्ञान में ऐसा मामला आएगा तो शौचालय लाभार्थियों के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही की जायेगी ।

यंहा यह भी बतादें कि सरकार ने 2 अक्टूबर 2019, महात्मा गांधी के जन्म की 150 वीं वर्षगांठ तक ग्रामीण भारत में 1.96 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के 1.2 करोड़ शौचालयों का निर्माण करके खुले में शौंच मुक्त भारत (ओडीएफ) को हासिल करने का लक्ष्य रखा है। खैर ! ये देखना होगा कि ग्रामीण, ब्लाक कर्मचारी व उच्चाधिकारी इस लक्ष्य को प्राप्त करने में अपनी कहाँ तक भूमिका अदा करते हैं । अंत मे एक खुशी की बात यह है कि देश का पहला राज्य सिक्किम ओडीएफ घोषित हो चुका है ।

( इस लेख पर अपनी राय अवश्य दें, लेख में कोई त्रुटि हो तो मुझे अवगत कराना ना भूलें )



Thursday, March 15, 2018

अपनों से ही हार गए योगी...!

अपनों से ही हार गए योगी ...!

गणेश चन्द पाण्डेय
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कहते हैं जब दुश्मन चोट करे तो सहा जा सकता है लेकिन जब अपने ही चोट करें तो उसे बयां भी करना मुश्किल हो जाता है । कुछ ऐसा ही नजारा गोरखपुर के उपचुनाव में देखने को मिला । जिस मिट्टी को 29 सालों तक अपने खून पसीने से सींचा... । जिस गोरखपुर का नाम देश विदेश में ऊंचा किया ....। जिस शहर को पूर्वांचल व प्रदेश का शान बनाया.... । हिन्दुवादिता की लड़ाई लड़ते हुए हिन्दुओं को उनका मान सम्मान दिलाया.... । आज उसी को उसी के अपनों ने सीधे दिल पर चोट दे दिया और ऐसा चोट दिया जिसे ना तो बयां किया जा सकता है और ना ही तो कंही जिक्र । आखिर योगी के आन बान शान में जनता ने ऐसा दाग क्यों लगा दिया ...? जिस जनता से उन्होंने बेहद प्यार किया उसी जनता ने उन्हें धोखा क्यों दिया ....!

योगी को चुनाव हारने की समीक्षा की जरूरत नही । गोरखपुर की जनता को स्वयं समीक्षा करने की जरूरत है । आखिर योगी के द्वारा दिलाये गए मान सम्मान के बदले उन्होंने योगी को क्या दिया ..? जिसके बदौलत आज गर्व से अपने को हिन्दू कहने वालों ने उन्हें आखिर क्या दिया । गोरखपुर वासियों एक बार जरूर सोचो योगी को आपसब ने दिया क्या..? ...और अगर सोचने समझने की शक्ति ना हो तो गोरखपुर शहर का एक बार भ्रमण पर निकल जाना.. सड़कों का बेरंग मिजाज...., सिसक रहा गोरक्षनाथ मंदिर..., रामगढ़ ताल के ठहरे हुए पानी...., बालबिहार पर चल रही हार की कचहरी....आदि आदि..! ये सब एहसास करा देंगी ...।

गोरखपुर वासियों याद रखो इस उपचुनाव में उपेंद्र दत्त शुक्ल सिर्फ एक नाम था । असल में ये चुनाव तो योगी लड़ रहे थे । जिस योगी के सामने कोई नही टिकता उसे के ऊपर आज उंगली उठाने वालों की तादाद बढ़ गयी है और उसके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ गोरखपुर वासी हैं । जिसने योगी के कुर्बानियों का ये सिला दिया । गोरखपुर को गोरक्षनाथ मंदिर की वजह से ही जाना जाता है और इस मंदिर पर अपनी फरियाद ले कर जाने वाले कभी निराश नही हुए । जरा ये भी तो सोचो ....जिस मुख्यमंत्री से कोई मिल नही पाता वो मुख्यमंत्री गोरखपुर जब भी आये..जनता दरबार लगा लेते ...और सबकी समस्याओं को स्वयं सुन कर तत्काल निस्तारण का आदेश देते ...! योगी ने कभी भी जनता दरबार की परंपरा को टूटने नही दिया मुख्यमंत्री बनने के बाद भी ।  कौन सा मुँह लेकर के अब आप सब उनके दरबार में अपनी समस्या ले कर के जाओगे ..? क्या योगी से नजरें मिला सकते हो ...अरे योगी तो दूर ...क्या खुद से नजरें मिला सकते हो ...? शायद नही और अगर मिला भी लिए तो खुद से सवाल जरूर करना...?

खैर ....गोरखपुर वासियों आप सब का ध्यान एक तरफ और भी ले जाना चाह रहे हैं ...इसलिए ध्यान देना आप सब ...! 

गोरखपुर ! एक सुंदर शहरों में शुमार है । प्रदेश का सम्पन्न शहर गोरखपुर और इस शहर को गोरक्षनाथ मंदिर के पीठाधीश्वरों व योगी आदित्यनाथ के निरंतर संघर्षों से ही बनाया जा सका है । 29 वर्षों के अपने संघर्षों में योगी ने जो लड़ाई गोरखपुर वासियों व गोरखपुर के विकास के लिए निःस्वार्थ भाव से लड़ा है उसे भुलाया नही जा सकता । गोरखपुर का नाम आज गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड बुक में भी दर्ज है ... विश्व का सबसे लम्बा रेलवे प्लेटफार्म गोरखपुर में ही है । बाबा राघवदास मेडिकल कालेज गोरखपुर में ही है । मदन मोहन मालवीय इंजीनियरिंग कालेज भी गोरखपुर में ही है । पण्डित दिन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर में ही है । खाद्य कारखाना, चीनी मिल, डिस्टलरी फैक्ट्री, पवार प्लांट, अधौगिक नगर गीडा भी गोरखपुर में ही है । गोरखपुर वासियों ये आप सब के लिए सौगात से कम नही कि विश्वस्तरीय सुविधाओं से सुसज्जित एम्स भी आज गोरखपुर में ही है । गैस पाइप लाइनों को बिछाया जा रहा है । रिंग रोड का निर्माण, रामगढ़ताल को पर्यटन स्थल बनाना, चिड़ियाघर का विस्तार, तारामंडल आदि आदि । 24 घंटे बिजली, पानी की सुविधा या फिर शिक्षा को सुदृण करना, सड़कों को गड्ढा मुक्त करना, गोरखपुर को अन्य शहरों से जोड़ने वाले सड़कों को टू लैन व फोर लैन में बदलना । ये सब तो योगी के अथक प्रयासों का ही देन है । आज जो गोरखपुर विकास की गति को पकड़ा है, गोरखपुर वासियों ! जरा सोचो ! क्या आप सब ने मिलकर इस विकास के रथ को ब्रेक लगाने का काम नही किया ? यही नहीं योगी के ही प्रयासों से मैट्रो भी आप के शहर में आने वाले वर्षों में दिखेगा । आज जिस गोरक्षनाथ चिकित्सालय की सुविधा प्राइवेट अस्पतालों की तरह मात्र चन्द रुपयों में मिल जाती है वो भी योगी का ही देन है ...! साथ ही योगी जी एक मिनी एम्स की स्थापना करने वाले हैं । चिलुआताल का भी सुंदरीकरण किया जाना प्राविधान में है । मेरे प्यारे गोरखपुर वासियों ! ये सारी की सारी सुविधाओं का लुफ्त सिर्फ आप सब के साथ आपके आने वाली पीढियां उठाएंगी । 

योगी और फ़क़ीर में क्या अंतर है ...कुछ भी नही । जो आज भी मुख्यमंत्री हो कर भी योगियों की तरह जीवन यापन करे उसे इस समाज से क्या चाहिए । उसे तो बस जनता का प्यार और सम्मान चाहिए । जिस शहर से सांसद से लेकर के मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया । योगी ने ये सफर अपने लिए नही बल्कि अपने प्यारे गोरखपुर वासियों व गोरखपुर के विकास के लिए तय किया ...जिस गोरखपुर में सभी धर्म सम्प्रदाय के लोग रहते हैं । मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी ने जो सौगात गोरखपुर की जनता को दिया है वो भूल पाना मुमकिन नही है । सबका साथ, सबका विकास के फार्मूले पर चलने वाले महंत योगी आदित्यनाथ ने ना सिर्फ गोरखपुर को उजाला दिया है जबकि पूरे प्रदेश को प्रकाशमान बनाया है । अभी तो मात्र एक साल ही तो उनका कार्यकाल पूर्ण हुआ फिर भी उन्होंने जो फैसले लिए वो किसी और मुख्यमंत्री के वश की बात नही हैं ।

जनता को खुद अब मंथन करना चाहिए ! क्या वो चाहते हैं ? क्या योगी को फिर वो आन बान शान लौटना चाहेंगे..? क्या फिर गर्व से कहना चाहेंगे कि हम उस शहर के वासी हैं जंहा सबका साथ सबका विकास होता है ? जरा सोचिए .....!

Wednesday, March 14, 2018

गोरखपुर का इतिहास आखिर क्यों बदला......?

गोरखपुर का इतिहास आखिर क्यों बदला......?


गणेश चन्द पाण्डेय
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उपचुनाव में लोकल मुद्दे रहते हैं हावी - मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो इतिहास गोरखपुर में विगत पांच लोकसभा चुनावों में लिखा था वो आखिर क्यों बदल गया ..? क्या उनकी लोकप्रियता कम हो गयी ...? क्या सिर्फ एक मात्र कारण ये मान लेना उचित होगा कि सभी विपक्षीय पार्टियां एक हो गयी थीं ? या फिर ये मान लिया जाय कि भाजपा कार्यकर्ता वोभर कॉन्फिडेंस के शिकार हो गए ? गोरखपुर और फूलपुर के जो नतीजे आये वो ना सिर्फ एक उपचुनाव का नतीजा था बल्कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के भी सम्मान से जुड़ा हुआ था । क्योंकि दोनों ने इस लोकसभा चुनाव को भारी मतों से जीते थे और उपचुनाव में पूरे देश की नजर इन दोनों सीटों पर टिकी हुई थी ।

अगर इस हार की समीक्षा किया जाय तो बहुत ज्यादे कारण गिनाए जा सकते हैं लेकिन मेरे नजरों में एक जो महत्वपूर्ण कारण नजर आया वो सभी कारणों पर भी भारी है । 29 साल तक जिस सीट पर गोरक्षपीठाधीश्वर व भाजपा का राज रहा हो उस चुनाव को जितना अपने आप में ही एक चुनौती होती है । लेकिन इस चुनौती को सभी विपक्षीय पार्टियां एक होकर सहर्ष स्वीकार की और जीत में बदल लिया । खैर अगर देखा जाए तो गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके कार्यकर्ता कंही ना कंही वोभर कांफिडेंस के शिकार हो गए । नही तो जिस सीट पर योगी आदित्यनाथ लाखों मतों से सदैव विजयी होते रहे उसे बदल पाना नामुमकिन था और यही भाजपा कार्यकर्ताओं की सोच एक नया इतिहास लिखने के लिए विपक्षियों को मौका दे दिया । 

जंहा एक तरफ भाजपा को हराने के लिए सभी विपक्षीय पार्टी एक जुट हो रही थी वंही भाजपा कार्यकर्ता शायद सो रहे थे । जमीनी स्तर पर कंही जनसंपर्क ही नही किया । वंही वर्तमान में मतदाता भी पहले से कंही ज्यादे जागरूक हुए हैं । भाजपा कार्यकर्ता तो सिर्फ योगी के चेहरे को आगे कर दिया और समझ बैठे की मुख्यमंत्री को कौन हारा सकता है ?...उफ़्फ़फ़फ़फ़ ये वोभर कांफिडेंस । किसी भी कार्य में वोभर कांफिडेंस ले डूबता है और माननीय मुख्यमंत्री ने भी माना है कि हार कि एक वजह वोभर कांफिडेंस भी है ।

सोशल मीडिया पर हावी, जमीनी स्तर पर फुस्स

गोरखपुर या फूलपुर लोकसभा उपचुनाव की अगर बात करें तो भाजपा कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर तो हावी रहे लेकिन जमीनी स्तर पर पूरी तरह से चूक गए । भाजपाईयों ने ये सोचा ही नही कि एक बड़ा तबका है जो इन सोशल मीडिया के बारे में आज भी नही जानता और उन्होंने ही इस इतिहास को बदलने में अपनी अहम भूमिका निभाई । जंहा एक तरफ विपक्ष के कार्यकर्ता चाहें वो क्षेत्रीय नेता हों या अपने पार्टी के ब्लाक अध्यक्ष वो सब एक जुट हो करके गांव से लगायत ब्लाक स्तर और विधानसभा से लगायत जिले स्तर तक घर घर लोगों से सम्पर्क किये । जिसका परिणाम आज हम सबके सामने है । वंही अगर भाजपा कार्यकर्ताओं की बात करें तो प्रत्येक कार्यकर्ता चाहे वो ब्लाक स्तर का अध्यक्ष ही क्यों ना हो ....सिर्फ बड़े नेताओं के आगे पीछे फोटो खिंचवाने और सोशल मीडिया पर अपडेट करने और करवाने में ही लगे रहे । अगर ये थोड़ा भी चले होते तो शायद योगी को उनके गृह जनपद में यूँ हार का मुंह नही देखना पड़ता । 

मैं भी गोरखपुरवासी हूँ और मेरा भी घर शहर और गांव दोनों जगह है । इस चुनाव में लगभग दो - तीन बार विपक्षीय कार्यकर्ता घर पर पहुंचे और अपनी बात रखी ...लेकिन वंही भाजपा कार्यकर्ताओं के दर्शन दुर्लभ हो गए क्योंकि वो अपने क्षेत्र को छोड़ बड़े बड़े नेताओं के आगे पीछे लगे हुए थे ...और फ़ोटो को सोशल साइट्स जैसे फेसबुक और व्हाट्सएप पर शेयर करने में लगे रह गए । जो इन्हें उन लोगों से दूर कर दिया जो इनकी बाट जोह रहे थे । 

विपक्षियों की एक जुटता भी हार का बना कारण

कहते हैं कि एक पतली लकड़ी को आसानी से कोई भी तोड़ सकता है लेकिन जब कई पतली पतली लकड़ियों की एक कर दिया जाए तो उसको तोड़ने के लिए अधिक बल लगाना पड़ता है और इसी नीति को सपा ने अपनायी और सभी छोटी बड़ी पार्टियों को एक करने में लग गयी । चुनाव का समय जैसे जैसे नजदीक आती गयीं । धीरे धीरे सभी विपक्ष नेताओं बसपा, निषाद पार्टी, पीस पार्टी आदि ने सपा को समर्थन दे दिया । जिससे सपा और मजबूत हो गयी और इसे तोड़ने के लिए अधिक बल की जरूरत चाहिए था जो जनता के बीच में ही जा कर भाजपा को मिल पाती । जो भाजपा कार्यकर्ता हांसिल करने में विफल रहे । जिसका परिणाम आज सामने है । वंही एक टीवी साक्षत्कार में माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी माना कि उपचुनाव लोकल मुद्दों पर लड़ा जाता है । जो आगामी चुनाव के लिए एक सबक है और ये नतीजा बहुत कुछ सीखा गया । मुख्यमंत्री ने यंहा तक कहा कि वोभर कांफिडेंस भी हार का एक कारण बना ।

यंहा इस हार जीत के मूल्यांकन में मैं जातिय समीकरण को नही उठा रहा हूँ क्योंकि मुझे नही लगता कि ये कारण महत्वपूर्ण है । अगर भाजपा कार्यकर्ताओं ने जमीनी स्तर पर कुछ किया होता तो ही कुछ लिखना उचित होता । वैसे हम सब जान भी रहे हैं कि जातीय समीकरण की दृष्टि से विपक्ष हावी रही और उसमें सेंधमारी नही हो पाई ।





Saturday, March 10, 2018

योगी के लोकप्रियता के आगे आसान नही इतिहास बदलना


योगी के लोकप्रियता के आगे आसान नही इतिहास बदलना

गणेश चन्द पाण्डेय
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गोरखपुर सदर के संसदीय सीट पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं । राजनीत से जुड़ा हर एक व्यक्ति अपने अपने स्तर से जोड़ घटना करने में लगा है । वंही इस सीट का इतिहास बदलने के लिए विपक्षियों में गठबंधन की भी खूब चर्चाएं चल रही हैं । संसदीय सीट का ये उपचुनाव जंहा भाजपा के लिए आनबान से जुड़ा है तो दूसरी तरफ विपक्ष इस सीट को हांसिल कर अपना अपना खोया हुआ आत्मविश्वास पुनः पाना चाह रही है । इसीलिए तो सारी विपक्षीय पार्टियां एक हो गयी हैं ।

अगर इतिहास के पन्नो को पलटा जाय तो हिंदुओं के हितों की राजनीति करने वाले गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर का कब्जा रहा है । गोरखपुर संसदीय सीट पर हिन्दू महासभा और भारतीय जनता पार्टी के बैनर तले गोरखनाथ मंदिर के महंथ और उत्तराधिकारीयों ने अधिकतम समय काबिज रह कर एक नया इतिहास बना दिया है । जिसको बदलना नामुमकिन सा है । वंही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जो क्षवि गोरखपुर में है उसको देखते हुए गोररक्ष नगरी के संसदीय सीट का इतिहास बदलना आसान नजर नही आ रहा है । 

गौरतलब है कि इस सीट पर उपचुना का यह दूसरा अवसर है। उपचुना का पहला अवसर 1970 में बहुत ही दुःखद कारणों से हुआ था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे से खाली हुई गोरखपुर संसदीय सीट पर मंदिर से जीतने वाले पहले उम्मीदवार महंत दिग्विजय नाथ थे। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में 1967 में विजय हासिल की थी और 1970 तक वह इस सीट से सांसद रहे। 1970 के चुनाव में उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में चुनाव जीते थे।

संसदीय सीटों पर अगर हुकूमत की बात करें तो करीब 35 वर्ष तक गोरक्षापीठाधीश्वरों ने ही गोरखपुर संसदीय सीट पर निरंतर जीत हासिल किया है । मंदिर का प्रभाव पूरे पूर्वांचल में इतना अधिक है कि गोरखपुर के आसपास के जनपदों की संसदीय सीटों पर भी इसका असर रहता है । वंही अगर हम गोरखपुर क्षेत्र के विकास की बात करें तो विकास का सम्पूर्ण श्रेय गोरक्षपीठाधीश्वरों के ही नाम है। 1967 में पहली बार हिन्दू महासभा के बैनर तले महन्त दिग्विजयनाथ ने धर्म रक्षा के मुद्दे को गम्भीरता से उठा कर सांसद बने थे । 1970 में उनका निधन हो गया। आजादी के बाद पहली बार उपचुनाव का नौबत आया। 1970 के उपचुनाव में उनके शिष्य महंत अवैधनाथ को क्षेत्रीय जनता ने अपना सांसद चुन लिया । इसके बाद 1971, 1977, 1980, 1984, के चुनाव में यह सीट मंदिर के पास नहीं रही। इस दौरान इस संसदीय सीट पर कांग्रेस का राज रहा ।

1989 के लोक सभा का चुनाव भाजपा के बैनर तले अवैधनाथ को फिर क्षेत्र की जनता ने जीत का ताज पहनाया । तब से इस संसदीय सीट पर गोरखनाथ मंदिर का प्रभुत्व कायम रहा । वंही लगातार जीतों के सिलसिले के क्रम को महंत अवैधनाथ के उत्तराधिकारी योगी अदित्यनाथ ने जारी रखा और 1998 से लेकर 2017 के सभी लोकसभा चुनाव पर लगातार जीत दर्ज करते रहे। वंही योगी आदित्यनाथ को कट्टर हिंदूवादी नेता के रूप में जाना जाने लगा । लेकिन उनका दरबार हर एक सम्प्रदाय के लिए खुला रहता है ।

उनके प्रतिभा और राजनीतिक नीतियों के चलते 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में उनको भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने उत्तर प्रदेश का कमान सौंपते हुए महंत योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के पद के लिए चयन कर लिया । जिसके चलते उन्हें सांसद का पद त्यागना पड़ा । योगी के मुख्यमंत्री की कुर्सी सुशोभित करते ही गोरखपुर की जनता खुशी से झूम उठी । वंही कट्टर हिंदूवादी नेताओं में शुमार योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के रूप में चयन किये जाने पर विपक्षीय नेताओं ने खूब तंज भी कसे थे । लेकिन अपने कुशल नेतृत्व और सटीक निर्णयों से सभी विपक्षियों के मुँह बन्द कर दिए । खैर, 1989 से लगातार इस संसदीय सीट पर भाजपा का ही परचम लहराता रहा है। ऐसे में इसका इतिहास बदला एक चुनौती है । वंही योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर के विकास में और तेजी आई है । यंहा पर विभिन्न परियोजनाओं को लाकर के मुख्यमंत्री ने हर वर्ग के दिलों में जगह बना ली है ।

वंही चुनावी सरगर्मी की बात करें तो इसका आकलन इसी से लगाया जा सकता है कि दो पार्टी के बड़े नेता जनसभाएं कर रहे हैं । एक वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ है तो एक पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं । अगर देखा जाए तो इन्ही दोनों के चेहरे को सामने रख कर चुनाव लड़ा जा रहा है । विपक्ष एक जुट हो कर के भाजपा को शिकस्त देने चाह रही है इसीलिए तो सपा, बसपा, निषाद पार्टी, पीस पार्टी आदि सभी एक ही आवाज बोल रहे हैं । लेकिन चर्चाओं पर अगर नजर डालें तो एक होते हुए भी कई वैचारिक मतभेदों से अलग थलग है । सपा ने तो सभी पार्टियों को एक करने में कामयाबी हांसिल तो कर लिया लेकिन कंही ना कंही प्रत्याशी के चयन में चूक गया । जो पार्टी कार्यकर्ताओं को चुभ रहा है । लेकिन पार्टी के मालिक का फैसला सर आंखों पर लेकर कार्यकर्ता चुप हैं । वंही अगर भाजपा की स्थिति का अवलोकन करें तो उसकी स्थिति विपक्ष से सुदृण है । लेकिन मंदिर छोड़ कर एक अन्य को प्रत्याशी घोषित करना उसके लिए भी मुसीबत साबित हो सकता है । फिलहाल भाजपा के पास जो सबसे बड़ी ताकत है वो हैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ । जिनकी लोकप्रियता के आगे सब फीका है । सदैव भारी मतों से विजयी रहे हैं जिसका फायदा भाजपा प्रत्याशी को मिलेगा । वंही गोरखपुर के आसपास के भाजपा विधायक, सांसद इस गोरखपुर लोकसभा के उपचुनाव में जी जान से जुड़े हुए हैं, जो भाजपा के हाथों को और मजबूत कर रहे हैं । दूसरी तरफ कांग्रेस विकास के मुद्दों को लेकर के चुनावी मैदान में है । जिसको जनता बखूबी जानती है । खैर ये चुनावी समीक्षा तो परिणाम आने तक चलता ही रहेेगा । इसके अलावां जनता ने भी तो कुछ सोच रखी होगी ।

माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती

माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती, यहाँ आदमी आदमी से जलता है.. दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं...