Monday, November 19, 2018

स्वर्गीय जमुना निषाद के आठवीं पुण्यतिथि पर विशेष

स्व0 जमुना निषाद का जीवन रहा है संघर्षशील

गणेश चन्द पाण्डेय
------------------


तस्वीरों में : बाएं स्व0 जमुना निषाद,
घटना स्थल 
स्व. जमुना निषाद का जन्म सन 1953 में गोरखपुर के ग्रामसभा खुटहन खास में 1953 में हुआ था । मध्यम परिवार में जन्में स्व0 निषाद का जीवन बड़ा ही संघर्षमय रहा । निषाद बिरादरी व गरीबों के उत्थान के लिए वो आखरी सांस तक लड़ते रहे । स्व0 जमुना निषाद उत्तर प्रदेश विधानसभा में पिपराईच निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। वह निषाद समुदाय के रूप में शामिल हैं । जमुना निषाद मायावती सरकार में मत्स्य मंत्री बने, लेकिन एक पुलिसकर्मी की हत्या के आरोपों पर नाम आने के बाद उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा । 

स्व0 जमुना निषाद
जमुना निषाद ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में निषाद समुदाय और मुसलमानों का भी राजनीतिक समर्थन प्राप्त किया था । लगभग पंद्रह चुनावों में चुनाव लड़ने के बावजूद उन्हें केवल दो बार ही जीत का स्वाद चखने को मिला था । पहली बार ग्राम प्रधान के रूप में और फिर 2007 में राज्य विधान सभा में जीत हासिल की । ​​उन्होंने पहली बार 1985 में स्वतंत्र रूप से विधानसभा चुनावों में चुनाव लड़ा और फिर 1989 और 1991 में लेकिन तीनों मौकों पर उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा । इसके बाद उन्हें समाजवादी पार्टी (सपा) द्वारा मैदान में उतारा गया, और 1998 और 2004 में पूर्व सांसद योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध लोकसभा चुनाव लड़े, जिसमें फिर हार का मुंह देखना पड़ा ।

अपनी माता राजमती निषाद, पत्नी व
बच्चे केे साथ अमरेंद्र
वंही स्व0 जमुना निषाद 1996 में कई पार्टियों के साथ संबंधों को बदला लेकिन पिपराईच विधानसभा का चुनाव फिर से हार गए । 2002 में उन्हें अपना विधानसभा क्षेत्र बदलकर पनीयार से सपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ाया गया लेकिन फिर हार गए । अंततः उत्तर प्रदेश चुनाव 2007 में ग्राम प्रधान के रूप में जीता और राजनीतिज्ञ और शराब-व्यापारी जितेंद्र जैसवाल ऊर्फ पप्पू भैया को लगभग 6,000 वोटों की मार्जिन से हरा कर पिपराईच निर्वाचन क्षेत्र से जीत गए और बसपा नेता मायावती ने उन्हें मत्स्य मंत्री के रूप में नियुक्त किया।

पत्नी रीता व बच्चे के सात अमरेंद्र निषाद
8 जून 2008 की रात जमुना निषाद ने गोरखपुर के पास महाराजगंज जिले के कोटवाली पुलिस थाने में एक दलित लड़की पर बलात्कार के अपराधियों के खिलाफ सजा दिलाने के राजनैतिक षड्यंत्र के तहत उन्हें ही जेल भेज दिया गया। जिसके चलते उनको मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और जेल जाना पड़ा । वंही जमानत मिलने के बाद घर आते वक्त लखनऊ के सफदरगंज हाइवे पर सड़क दुर्घटना में 19 नवम्बर 2010 को मृत्यु हो गयी । बतादें की इनकी सड़क दुर्घटना को भी षड्यंत्र माना जाता है । वंही स्व0 जमुना निषाद की धर्मपत्नी राजमती निषाद पूर्व विधायक पिपराइच और एकलौते सुपुत्र अमरेंद्र निषाद पिता के पद चिन्हों पर चलते हुए राजनीतिक जीवन को अपना लिया है । तो वंही उनकी पत्नी रीता निषाद कदम से कदम मिला करके साथ दे रही हैं ।

Tuesday, July 31, 2018

सर्व सिद्धिदायक सावन का सोमवार, करें पूजा-अर्चना



इस सावन पड़ रहे हैं चार सोमवार जो देंगे मनचाहा वरदान

गणेश पाण्डेय 'राज'
-------------

हिन्दू धर्म, अनेक मान्यताओं और विभिन्न प्रकार के संकलन से बना है। हिन्दू धर्म के अनुयायी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ़ रहते हैं कि हिन्दू जीवनशैली में क्या चीज अनिवार्य है और क्या पूरी तरह वर्जित। यही वजह है कि अधिकांश हिंदू परिवारों में नीति-नियमों का भरपूर पालन किया जाता है। हिन्दू परिवारों में सावन को बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण महीने के तौर पर देखा जाता है। इसकी महत्ता इसी बात से समझी जा सकती है कि सावन के माह में मांसाहार पूरी तरह वर्जित होता है और शाकाहार को ही उपयुक्त माना गया है। इसके अलावा मदिरा पान भी निषेध माना गया है।

हिन्दू धर्मों में सावन का महीना सबसे ज्यादा पुण्यदायी माना गया है। ऐसे में यदि विशेष योगों का योग भी बन जाए तो सोने पर सुहागा ही होता है। कुछ ऐसा ही होने वाला है 28 जुलाई से शुरू हो रहे सावन महीने में। इस बार देवों के देव महादेव भगवान शंकर की उपासना के लिए महत्वपूर्ण सावन माह में कई विशेष संयोग पड़ रहे हैं। हर सोमवार को साधना का विशेष संयोग है। भक्तों ने पहले दिन ही कांवड़ यात्रा, रुद्राभिषेक और जलाभिषेक की तैयारी की है। ज्योतिर्विदों के अनुसार इस बार सावन में शिव की पूजा अधिक फलदायी होगी। 

वंही सभी शिवालयों में विशेष तैयारी पूरी कर ली गयी है । शिव मंदिरों में सावन के पहले सोमवार को भोर से ही भक्तों का तांता लगा रहा । यंहा बतादें कि श्रावण मास में इस बार सावन का महीना 28 या 29 दिनों का नहीं रहेगा बल्कि पूरे 30 दिनों तक चलेगा। ऐसा संयोग 19 साल बाद बन रहा है। दरअसल इस बार का सावन 30 दिनों का होने के पीछे अधिकमास पड़ने के कारण हुआ है। सबसे खास बात यह है कि इस सावन माह में 4 सोमवार पड़ रहा है । बहुत से लोग सावन या श्रावण के महीने में आने वाले पहले सोमवार से ही 16 सोमवार व्रत की शुरुआत करते हैं। जो सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है । इन चारों सोमवार जगत गुरु भगवान शिव का पूजन और शिवालयों में रुद्राभिषेक होगा। ऐसी मान्यता है कि सावन में सोमवार को व्रत रखने और शिवलिंग पर जल चढ़ाने से घर में सुख-समृद्धिआती है। भोलेनाथ इतने भोले हैं कि मात्र 'ॐ नमः शिवाय' कहने मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं ।

सावन के महीने में व्रत रखने का भी विशेष महत्व दर्शाया गया है। मान्यता है कि कुंवारी लड़कियां अगर इस पूरे महीने व्रत रखती हैं तो उन्हें उनकी पसंद का जीवनसाथी मिलता है। इसके पीछे भी एक कथा मौजूद है जो शिव और पार्वती से जुड़ी है। पिता दक्ष द्वारा अपने पति का अपमान होता देख सती ने आत्मदाह कर लिया था। पार्वती के रूप में सती ने पुनर्जन्म लिया और शिव को अपना बनाने के लिए उन्होंने सावन के सभी सोमवार का व्रत रखा। फलस्वरूप उन्हें भगवान शिव पति रूप में मिले। इसके साथ सावन में व्रत रखने से भोले बाबा की कृपा बनी रहती है ।

Thursday, July 26, 2018

जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।

बहुत सुंदर कथा .......

गणेश पाण्डेय 'राज'

दोस्तों ! आज इस अत्याधुनिक युग में कोई बिना स्वार्थ के कुछ भी नही करता और ना ही करना चाहता है । हम स्वयं भगवान की आराधना इस वजह से करते हैं कि हमारे साथ जुड़े लोगों की भगवान अच्छा करें । साथ ही ये अपेक्षा रखते हैं कि हमारे प्रार्थना के बदले कुछ ना कुछ अच्छा होगा । लेकिन ये भूल जाते हैं कि भगवान अंतर्यामी है । उससे कुछ कहने या मांगने की जरूरत नही । वो (भगवान) अपने बच्चों से सदैव प्रेम करता है और उनकी रक्षा करता है । बशर्ते हम सदमार्ग पर चलें । अपने कर्मों पर विश्वास करें । हम सब ये भी जानते हैं कि बुरा करने पर परिणाम बुरा ही होगा और अच्छा करने पर परिणाम अच्छा ही होगा । कर्मों का फल तो भुगतना ही पड़ेगा ..देर-सबेर ।

मित्रों ! आज जो कहानी आप सब के सामने रख रहे हैं वो जीवन को सुखमय और हमें निस्वार्थ प्रेम व कर्म करने की प्रेरणा देता है । जीवन को सदमार्ग पर ले जाएगा ...

एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..।

वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।

एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"

दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा....

वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"

वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी कि -"कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"

एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली -"मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी।"

और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और वह रुक गई ओर वह बोली - "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे की आँच में जला दिया..। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।

हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेके, "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।

इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।

हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।

ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..।

वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।

जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।

लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.. उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया.. भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे.. मैंने उससे खाने को कुछ माँगा.. उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"

जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लिया.....।

उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला कर नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?

और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था -
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा,और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ।"

इस कहानी का उद्देश तो समझ ही गये होंगे आप सब .... मित्रों हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..।
==========

अगर आपको ये कहानी पसंद आई हो तो इसे दूसरों के साथ ज़रूर शेयर करें....

मैं आपसे दावे के साथ कह सकता हूँ कि ये बहुत से लोगों के जीवन को छुएगी और अनेक लोगों को बदलेगी.🙏😊

Sunday, July 15, 2018

पॉलीथिन बैग बैन : कंही फिर ना बन जाये मजाक !

हाल-ए-पॉलीथिन

पॉलीथिन बैग बैन या मजाक, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी लगाया था बैन


- 21 जनवरी 2016 को सपा सरकार ने भी लगाई थी पॉलीथिन बैग पर पूर्ण प्रतिबंध, जिसका नही देखने को मिला असर । 15 जुलाई 2018 को योगी सरकार ने पुनः लगाई पॉलीथिन बैग के प्रयोग पर बैन, कितना होगा असर ?

- छोटे बड़े सभी दुकानों पर दिख रही पॉलीथिन बैग

गणेश पाण्डेय 'राज'
--------------

विकसित देशों के नागरिक स्वच्छता के प्रति अधिक सजग रहते हैं। विकसित देशों में कहीं सड़कों पर कचरा फैला हुआ नहीं दिखाई देता। कचरे की समस्या विकासशील तथा अविकसित देशों में अधिक है। भारत अभी भी एक विकासशील देश ही है। भारत के लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता अब धीरे-धीरे बढ़ रही है। प्रधानमंत्री के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का असर अगले कुछ वर्षों में अवश्य नजर आने लगेगा। नि:संदेह जागरूकता अत्यन्त महत्वपूर्ण है, परन्तु सरकार को भी कुछ नियमों और कानूनों में परिवर्तन करके यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कचरे में शामिल प्लास्टिक जैसे हानिकारक तत्वों के इस्तेमाल को कैसे नियंत्रित किया जाये।

विदित हो कि 21 जनवरी (गुरुवार) 2016 को ही पूर्व सपा सरकार ने पूरे उत्तर प्रदेश में पॉलिथीन की थैलियों पर पूरी तरह प्रतिबंध लागू कर दिया था। यह रोक हर तरह की प्लास्टिक थैलियों पर लागू किया गया था और इसमें पॉली प्रोपलीन (आम पॉलिथीन थैली) और कपड़े की तरह दिखने वाली प्लास्टिक की थैलियां भी शामिल थीं । यही नहीं निमंत्रण पत्र, किताबों और पत्रिकाओं को बांधने के लिए भी किसी भी तरह की पारदर्शी या दूसरी पॉलिथीन शीट या फिल्म के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई थी। जबकि प्लास्टिक के पैकेट में बिकने वाले खाने-पीने के सामान, तेल, दूध और बाकी खाने के सामान को इस प्रतिबंध से बाहर रखा गया है।

लेकिन पॉलीथिन के प्रतिबंध के बावजूद गोरखपुर क्षेत्र के साथ ही साथ पूरे प्रदेश में पॉलीथिन से बनी थैलियों का इस्तेमाल खूब देखने को मिल रहा है । लगभग अधिकांश दुकानों पर पॉलीथिन का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है । चाहे वो किराना की दुकान हो , गारमेंट्स की दुकान हो, पान की गुमटी या फिर मेडिकल स्टोर ही क्यों ना हो , हर एक जगह पालीथीन से बना थैला आसानी से मिल जायेगा । सपा सरकार का पॉलीथिन पर बैन पूरी तरह से विफल रहा । जिसका एक मुख्य कारण यह भी था कि इसका पालन कड़ाई से नही कराया गया ।


सत्ता परिवर्तन के बाद प्रदेश की कमान भाजपा के योगी सरकार के हाथों में आ गयी ।

देर से ही सही योगी सरकार ने पॉलीथिन से होने वाली गम्भीर समस्यओं को गम्भीरता से लेते हुए 15 जुलाई 2018 से पूरे प्रदेश में बैन लगा दिया है । यही नही पकड़े जाने पर 10 हजार रुपये के जुर्माने का भी प्रविधान कर रखा है । लेकिन मुद्दा ये है कि कंही सपा सरकार की तरह योगी सरकार का भी पॉलीथिन पर पुनः बैन की घोषणा विफल ना हो जाये ? फिलहाल यहाँ यह भी ध्यान देने की बात है कि सरकारें चाहे जितनी भी अच्छी से अच्छी घोषणाएं क्यों ना कर दें लेकिन उसको अमली जामा पहनाने वाले जिम्मेदारों की उदासीनता का ही देन है कि आज तक क्षेत्र में धड़ल्ले से पॉलीथिन से बने थैलों का खूब इस्तेमाल हो रहा है । यही आलम रहा तो हम पर्यावरण को सुरक्षित कैसे रख पाएंगे ? वंही नालियां, चौराहों आदि जगहों पर पॉलीथिन के ढेर देखने को मिलते हैं । क्या ऐसे ही स्वच्छ भारत की कल्पना हम सब करते हैं ? एक एक को जागरूक होना पड़ेगा और जिम्मेदारों को इसके प्रति पहल करना पड़ेगा वो भी नए सिरे से फिर कंही जा कर हम कुछ हद तक सफल हो पाएंगे ।


एक किराने वाले ने बताया कि साहब ! अगर बैन लग गया है तो अभी भी थोक में पॉलीथिन का थैला क्यों मिल रहा है ? हम लोग तो गोरखपुर ही शहर से ही खरीद कर लाते हैं । शहर में ही सब जिम्मेदार अधिकारी बैठे हैं फिर भी उन थोक विक्रेताओं पर नकेल लगाने में नाकाम हैं और हम लोगों को खामखा परेशान किया जाता है । अगर पॉलीथिन बनना ही बंद हो जाये तो फिर कंहा किसी को मिलने वाला है पॉलीथिन ?

क्यों है पॉलीथिन पर्यावरण के लिए खतरा

बाजार से घर पहुंचने के उपरांत जब इन बैगों को फेंक दिया जाता है तब पतली और हल्की होने के चलते प्लास्टिक बैग हवा में उड़ते हुए खेत खलिहान से लेकर नाले, तालाब, नदी तक फैलकर पर्यावरण के लिए गंभीर हो जाते हैं। अपने गाव शहर के कचरे के अंबारों को भी देखा जाये तो प्लास्टिक का कचरा ही अधिक नजर आएगा। उल्लेखनीय है कि बायो डिग्रेडेब्ल नहीं होने के कारण प्लास्टिक बैग वातावरण में आसानी से सड़कर विखंडित नहीं होते।

अगर हम पॉलीथिन का अध्ययन करें तो पाएंगे कि पॉलीथिन पेट्रोकेमिकल से बने होने के चलते इनके पूरी तरह से नष्ट होने में एक हजार वर्ष तक का समय लग जाता है। जिसका मतलब है इतने सालों तक ये अपने वर्तमान स्वरूप में नदी, नाले, पर्वत, समतल और सागर यानी संपूर्ण पर्यावरण को प्रदूषित करते रहते हैं। निकासी नालों में फंसकर जल जमाव यहा तक कि बाढ़ की स्थिति भी उत्पन्न कर देती है ये प्लास्टिक कचरा। जैसा सफाई कर्मी भी नालियों के जाम की एक प्रमुख कारण प्लास्टिक कचरे को ही मानते हैं। इतना ही नही कई जीव, पक्षी, मछलिया खाद्य पदार्थ के भ्रम में इन्हें निगलकर क्लॉगिंग के चलते मौत का शिकार हो जाते हैं। इनमें घरेलू मवेशी भी शामिल हैं। कई मौके पर तो छोटे बच्चों के इन प्लास्टिक बैग से खेलने के क्रम में दम घुटने से मौत के समाचार भी आते रहे हैं।

प्लास्टिक बैग के इन हानिकारक तथ्यों को देखते हुए प्रतिवर्ष 03 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस भी मनाया जाता है लेकिन पॉलीथिन प्रतिबंधित होने के बावजूद भी धड़ल्ले से प्रयोग में लायी जा रही है जो एक चिंता की बात है । फिलहाल इस ओर योगी सरकार की पहल सराहनीय है लेकिन ये भी नही भूलना चाहिए कि जब तक इसको कड़ाई से पालन करा कर लोगों के व्यवहार में परिवर्तन नही लाया जाता तब तक पॉलीथिन पर बैन एक जुमला ही साबित होगा । इसका जीता जागता उदाहरण हम सब ने पूर्व सरकार के दौरान देख चुके हैं ।

(अपनी राय अवश्य कमेंट बॉक्स में दें ।)

Sunday, June 10, 2018

पॉजिटिव खबर : जो आपके चेहरे पर मुस्कान ला देगी ।


संकल्प ने बदली सूरत

सरकारी विद्यालय या कोई कान्वेंट स्कूल , कन्फ्यूज हो जाएंगे आप

गणेश पाण्डेय 'राज'
------------------

कहते हैं कि अगर मन में जज़्बा हो कुछ कर दिखाने की तो सारी कायनात झुक जाती है उसे बनाने में । बस इच्छा शक्ति प्रबल होनी चाहिए फिर आप जो चाहते हैं वो आपकी मुट्ठी में होगी । एक शायर की ये चन्द पंक्तियां भी इसी ओर इशारा करती हैं - "कौन कहता है कि आसमान में छेद नही होती, एक पत्थर तबियत से तो उछालो यारों" । कहने का तात्पर्य है कि जंहा चाह है वंही राह है । संकल्प से बढ़ कर कुछ भी नही । चलिए ज्यादे भूमिका ना बांधते हुए सीधे मुद्दे पर आते हैं ।


भारत देश के सरकारी विद्यालयों से हम सब बखूबी परिचित हैं । खास करके भवन से लगायत वँहा की शिक्षा व्यवस्था की । कहने में कोई संकोच नही है कि प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था का स्तर दिन ब दिन गिरता जा रहा है । एक जमाना था कि प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को बैठने के लिए जगह ही कम पड़ती थी और आज प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की संख्या नाम मात्र है । वैसे तो सरकार इन विद्यालयों को प्रमोट करने के लिए काफी प्रयासरत है लेकिन उसका सारा प्रयास विफल है । जिन सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता को बनाये रखने की बातें आये दिन सरकारें तो करती हैं लेकिन असल मुद्दे पर चर्चा तक नही करती हैं । देश के मुख्यमंत्रियों, सांसदों, विधायकों, अधिकारियों या इनके रिश्तेदारों के एक भी बच्चे आपको इन स्कूलों में पढ़ते हुए नही मिलेंगे अगर मिल गए तो मुझे जरूर बताना !  जबकि यही नेता और अधिकारी आये दिन सरकारी स्कूलों का निरीक्षण करते रहते हैं ।


उत्तर प्रदेश सरकार इस समय उन विद्यालयों पर नकेल लगाने की कोशिश कर रही है जो मान्यता विहीन है । लेकिन प्राथमिक विद्यालयों व उच्च माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षा गुणवत्ता पर ध्यान नही दे पा रही है । इन सरकारी विद्यालयों में आपको बच्चों की संख्याओं की स्थिति देख दंग रह जाएंगे । सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में आये दिन गिरावट होने के कारण सरकारी विद्यालयों में अभिभावक अपने बच्चों को नही भेजना चाह रहे । चाहे वो गरीब का बच्चा ही क्यों ना हो ।

शिक्षा की महत्ता क्या है आप को उन गांवों में भी देखने को मिलेगा जंहा एक ठेला चलाने वाला अभिभावक भी अपने बच्चे को कान्वेंट स्कूलों में भेजने के लिए दिन रात मेहनत करता है । सोचने वाली बात है कि सरकारी विद्यालयों में सारी सुविधाएं मुफ्त होने के बावजूद अभिभावक अपने बच्चों को क्यों नही भेज रहा है ? जबकि इन विद्यालयों में प्रशिक्षित अध्यापक उपलब्ध हैं । फिर भी छात्रों के नामांकन और उपस्थिति में जमीन आसमान का अंतर देखने को मिलता है । वंही ध्यान देने वाली बात है कि सरकार आज जिन मान्यताविहीन विद्यालयों को बन्द करवा रही है उसमें अध्यापन कार्य करने वालों की पगार सरकारी विद्यालय के अध्यापक के एक चौथाई भी नही है और ना ही सरकारी अध्यापक की तरह क्वालिफिकेशन । फिर भी वँहा बच्चों की संख्या काफी अच्छी देखने को मिलती है । ...इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारी विद्यालयों के अध्यापक ना ही अपने जिम्मेदारी का सही ढंग से निर्वहन कर रहे हैं और ना ही तो इन विद्यालयों में कोई सिस्टम ही ठीक ढंग से कार्य कर रहा है । ऐसे में एक खबर आप को जरूर कुछ राहत देगी ।


जिस खबर की मैं चर्चा करने जा रहा हूँ वो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर के भटहट विकास खंड के प्राथमिक विद्यालय कैथवलिया से है । यंहा के ग्राम प्रधान ने कैथवलिया प्राथमिक विद्यालय को कान्वेंट स्कूल बना दिया है । योगी सरकार के मंशा के अनुरूप भटहट क्षेत्र का प्राथमिक विद्यालय कैथवलिया विद्यालय परिवार व ग्राम प्रधान के सकारात्मक सोच के बदौलत कान्वेंट स्कूल को भी मात दे दिया है । पूरा विद्यालय परिसर टाइल्स व अत्याधुनिक संसाधन से युक्त हो चुका है । विद्यालय परिवार ग्राम प्रधान को धन्यवाद देते हुए संकल्प लिया है कि प्रधान ने बदली विद्यालय की सूरत से अब हम सब मिलकर बच्चों का सूरत बदल देंगे । वंही अब ये विद्यालय पूरे ब्लाक क्षेत्र के साथ जनपद में चर्चा का विषय भी बन गया है ।


भटहट ब्लाक क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय कैथवलिया में सत्र 2017 - 18 के समापन के दौरान आयोजित शिक्षक - अभिभावक बैठक में विद्यालय के प्रधानाध्यापक ओंकारनाथ सिंह व शिक्षकों ने विद्यालय भवन व अन्य संसाधनों के भारी कमी से ग्राम प्रधान विन्देश्वरी गुप्ता को अवगत कराते हुए बेहतर शैक्षणिक माहौल स्थापित करने का अनुरोध किया था । जिस पर ग्राम प्रधान ने शिक्षकों से संकल्प कराया कि मैं विद्यालय परिसर का कायाकल्प कर दूंगा बशर्ते आप लोग बच्चों के सूरत बदलने हेतु संकल्पित होवें । शिक्षकगण ओंकारनाथ सिंह, रमेश मणि त्रिपाठ , रचना श्रीवास्तवा, ऋतु कोरी शिक्षामित्रगण फखरुद्दीन खान व कविता साहनी ने बैठक में पूरे ग्रामसभा के सामने बच्चों का सूरत बदलने का संकल्प लिया ।


फिर क्या था ग्रामप्रधान विन्देश्वरी गुप्ता ने विद्यालय का छत व फर्श की मरम्मत कराने के साथ ही कक्षा कक्ष व पूरे परिसर में टाईल्स लगवाया। बच्चों के खेल स्थान पर इंटरलॉकिंग, शौचालय को दुरुस्त कराने के बाद पूरे विद्यालय का डिजाइन पेंटिंग करा डाली । जिस पर शिक्षकों ने ग्रामप्रधान की उपस्थिति में वचन दिया कि आपने विद्यालय की सूरत बदली है अब हम बच्चों का सूरत बदल कर रहेंगे । वंही जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी भुपेंद्रनारायण सिंह ने ग्रामप्रधान व विद्यालय परिवार को इस सराहनीय कार्य की प्रशंसा की है और बेहतर शैक्षणिक माहौल स्थापित करने का आग्रह किया है तथा अन्य प्राथमिक विद्यालयों को भी इससे सीख लेने की अपील की है ।


अगर इसी प्रकार धीरे धीरे ही सही सरकारी विद्यालयों की सूरत बदली जाय तो वो दिन दूर नही जब सरकारी विद्यालयों में बच्चों की संख्या देखने लायक होगी । लेकिन सरकार को शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना होगा । तभी जा कर के हमारे बच्चों का भविष्य स्वर्णिम हो सकेगा ।



( अपनी राय जरूर दें )

Saturday, May 12, 2018

रमजान का पाक महीना - बरकत का महीना


रमजान का पाक महीना - बरकत का महीना

गणेश चन्द पाण्डेय
------------------

रमजान का महीना आते ही मुसलमानों के घरों में खुशियां छा जाती है। रमजान के महीने में अल्लाह के रसूल के फरमान के मुताबिक हर फर्ज इबादतों का सत्तर गुणा अधिक बढ़ा दिया जाता है। जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते हैं और जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिये जाते है। इसलिए इस माह को बरकत का महीना भी कहते हैं। रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां माह होता है। रमजान का चांद देखते ही लोग इबादत में लग जाते हैं। मौलाना कारी नुरूलहुदा मिसबाही कहते हैं कि रमजान में रोजा रखकर रात दिन ईबादत करने से बहुत शवाब मिलता है।
 
हदीस में आया है कि रमजान का महीना आते ही बानी-ए-इसलाम मोहम्मद जाकर दिन भर भूखे-प्यासे  रोजा रखकर रब की खूब इबादत किया करते थे। इसकी इबादत अल्लाह को इतनी पसंद आया कि उसी समय से मुसलमानों पर रमजान का रोजा फर्ज कर दिया। कुरानशरीफ धरती पर उतारी गयी तथा इस रात में ही हजरत-ए-आदम के जन्म संबंधी बुनियाद भी रखी-गयी रमजान का रोजा हर मर्द-औरत बालिग पर फर्ज है। बातचीत के दौरान हमारे अजीज मित्र मौलाना कारी नुरूलहुदा मिसबाही ने रमजान के महीने में होने वाले सभी क्रियाकलापों को विस्तार से बताया ।

क्या है रमजान
रमजान का महीना बेहद पाक व रहम वाला होता है। इस महीने में इबादत का सत्तर गुना ज्यादा शवाब  मिलता है। रमजान में रोजा रखने का खास महत्व होता है। रमजान के महीने में 30 दिन लोग रोजा रखते हैं। इसके बाद इस महीने के आखिरी दिन ईद मनाई जाती है।
 
कैसे रखते हैं रोजा
रोजा रखने पर इनसान को आंख, हाथ, दिल व मुंह से कुछ भी बुरा करने से परहेज करना चाहिए। इससे रोजा रखने वाले इंसान को हमेशा बुराई से तोबा करते रहना चाहिए। इससे रोजा रखने वाले का दिल साफ रहता है। रोजे के दौरान रोजा रखने वालों को सूर्य निकलने से पहले व सूर्य डूबने तक किसी भी तरह का चीज खाने पीने से परहेज करना चाहिए। रोजेदार की दिन की शुरुआत हल्की सुबह में अजान से पहले सहेरी में होती है।
 
रमजान की नमाज
रमजान को कुरान का महीना कहा जाता है। रमजान की रात में विशेष नमाज अदा की जाती है, जिसे तरावी कहते है। यह सबसे लंबी 20 रेकायत के दौरान पढ़ी जाती है। इस नमाज को पढ़ने के लिए हर मसजिद में एक हाफिज को बुलाया जाता है। हाफिज उसे कहते हैं, जिसे पूरी कुरान मुंह जुबानी याद हो।
 
रमजान रोजे की अजमत
 रमजानुल के महीने में पवित्र कुरान नाजिल किया गया। यह महीना अल्लाह से निकट होने का महीना है। अल्लाह इस महीनों में रहमतों की बारिश करता है। रमजान के रोजे के बारे में कुरान में आया है कि ए ईमान वालों (मुसलमानों) तुम पर रोजा फर्ज किया गया था ताकि तुम पहरेगार और तकवा बनो।
 
रोजा कब फर्ज हुआ
रमजानुल मुबारक का रोजा सन् दो हजार में फर्ज किया। रोजा पहले किताब (आसमानी किताब) के मानने वालों पर फर्ज किया गया है। हजरत मूसा अलैह सलाम के काल में अशूरा यानि दस मुहर्रम को फर्ज था। हजरत मोहम्मद के काल में रमजानुल मुबारक के 30 रोजे फर्ज किये गये।
 
रमजान के महीने में कुरान धरती पर उतरी
इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना रमजानुल मुबारक है। साल के 12 महीनों में रमजान का विशेष महत्व है। यह महीना पूरी दुनिया के लिए है। इसे अल्लाह का महीना भी कहा जाता है।
 
तरावी पढ़ना शबाव
इफ्तार करने के बाद रोजेदार नमाज-ए-ऐशा के बाद हर एक मस्जिद या दूसरी सार्वजनिक स्थानों में तरावी पढ़ी जाती है। इस नमाज में काफी भीड़ रहती है। पूरे तीस दिनों तक हाफिज एक कुरान पढ़ता है और पीछे लोगों कुरान सुनते हैं। जिससे तरावी का शबाव मिलता है।
 
शबे कद्र का एहतमाम करें
रमजानूल मुबारक को तीन अशरा में बांटा गया है। पहला अशरा एक से दस रमजान तक रहमतों का है। इसमें रहमतों की बारिश होती है। दूसरा अशरा 11 से 20 रमजान तक जहन्नुम से निजात पाने का है अंतिम अशरा में ही 21, 23, 25, 27, 29 पाक रातें हैं। इन पांचों रात में एक रात शबेकद्र की रात है। इस रात में पवित्र कुरान में आया है कि हजारों महीनों से बेहतर है। इस रात इबादत का शबाव, एक हजार महीनों तक इबादत करने के बराबर शबाव मिलता है।
 
सेहरी करना बरकत
सेहरी खाने में बरकत है सेहरी देर से खाना सुन्नत है। अगर सेहरी खाते समय अजान हो जाय तो खाना तुरंत छोड़ दें।
 
जकात व खैरात देना फर्ज
रमजान के महीने में हर दौलतमंद लोगों को जकात देना फर्ज है। जकात देना उन लोगों पर है जिसके पास 7.5 तोला सोना और 52.5 तोले चांदी के बराबर संपत्ति या रुपया हो तो रमजान में जकात देना फर्ज है। खैरात हर रोजेदार के ऊपर फर्ज फरमाया गया है।
 
फितरा मुसलमानों पर फर्ज
फितरा निकलना मुसलमानों पर फर्ज है। फितरा उस वक्त निकाला जाता है कि ईद के नमाज के पहले कोई बच्च पैदा होता है तो उसके भी नाम फितरा निकालना वाजिब है। फितरा प्रत्येक व्यक्ति पर दो किलो 45 ग्राम जाै या गेहूं या उसके बदले उसकी कीमत जो बनता है वह निकाला जाता है।

(अगर आपको ये आर्टिकल पसन्द आया तो जरूर कम्मेंट करें ।)

Saturday, April 28, 2018

कंही डरावना ना हो इस बार यूपी बोर्ड का परीक्षा परिणाम

यूपी बोर्ड परिणाम को लेकर काफी उत्साहित हैं छात्र

गणेश पाण्डेय 'राज'
----------------------

यूपी बोर्ड की परीक्षा परिणाम 29 अप्रैल को दोपहर 12 बजे के बाद घोषित किया जाएगा । जंहा एक तरफ हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा में शामिल छात्र छात्राएं अपने परीक्षा परिणाम को लेकर के उत्साहित है वंही दूसरी तरफ सशंकित भी है क्योंकि इस बार योगी सरकार ने नकल विहीन परीक्षा कराने के लिए खासा इंतेजाम कर रखा था । जिसके चलते शिक्षा माफियाओं का कमर टूट गया था और उनका परीक्षा को हाईजैक करने का सारा इंतेजाम विफल हो गया था । वंही जिसने कानून को हाथ में लेकर के नकल कराने की कोशिश की वो सलाखों के पीछे भी भेजे जा चुके हैं । इतनी कड़क व्यवस्था पहली बार किसी बोर्ड परीक्षा में देखा गया । विदित हो कि सीसीटीवी कैमरे के नजर में यूपी बोर्ड की परीक्षा होने के कारण लाखों बच्चों ने परीक्षा ही छोड़ दिया था । वंही योगी सरकार पर भी यूपी बोर्ड के परीक्षा परिणाम को शत- प्रतिशत घोषित करने का दबाव भी रहेगा । फिलहाल रविवार को छुट्टी का दिन होने के कारण बच्चे और अभिभावकों को परीक्षा परिणाम आने का इन्तेजार बेसब्री से रहेगा ।

यूपी बोर्ड के हाई स्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा परिणाम जानने के लिए लिंक पर क्लिक करें (29 अप्रैल दिन के 12 बजे के बाद) -

http://upresults.nic.in

Saturday, April 21, 2018

पहले देश का बंटवारा, अब रेप का बंटवारा ..?

पहले देश का बंटवारा, अब रेप का बंटवारा ..?

देखा जाए तो ऐसा लगता है कि बलात्कारियों को भी आरक्षण मिल गया हो । जो जिस कटेगरी में अत्याचार करेगा उसे वैसी ही सजा मिलेगी।

गणेश पाण्डेय 'राज'
------------------------
पिछले कुछ महीनों में जिस तरीके से बच्चियों संग रेप की घटनाओं को अंजाम दिया गया । उससे ना सिर्फ देश हिल गया बल्कि विदेशों में भी खूब चर्चा का विषय बना रहा । देश में कैंडिल मार्च, पोस्टर सेलेब्रिटीज़ अभिनेत्रियों सहित देश के हर एक नागरिक ने इस घिनौने कृत को जड़ से खत्म करने की आवाज उठाई । वैसे तो इसका आगाज पांच वर्ष पूर्व निर्भया कांड के दौरान ही हो गया था लेकिन शायद उस वक़्त बहुत से लोग सड़कों पर नही उतर पाए और सरकार ने भी ध्यान नही दिया । फिलहाल कठुआ कांड में फ़िल्म अभिनेत्रियों से लगायत गांव गांव में लोगों ने कैंडिल मार्च कर सरकार से न्याय की गुहार लगाई । वंही मोदी सरकार ने भी इस मुद्दे को गम्भीरता से लिया और कानून में बदलाव करते हुए 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार करने पर सजा-ए-मौत का ऐलान कर दिया । लेकिन बलात्कार तो बलात्कार है चाहे वो बच्ची के साथ हो या फिर महिला के साथ । इस घिनौने केश में तो मौत की ही सजा होनी चाहिये ?

भारत देश सन 1947 में दो देशों में बंट गया । भारत और पाकिस्तान । आज भी हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं कि अपना देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ । उस वक़्त बाहुल्य सम्प्रदाय को ब्रिटिश सरकार ने दो भागों में विभाजित कर दिया था । लेकिन 2018 में 70 साल के बाद फिर एक बार महिलाओं पर हो रहे घिनौने अत्याचार बलात्कार जैसी घटनाओं को उम्र के हिसाब से बांट दिया गया । वंही देखा जाए तो ऐसा लगता है कि बलात्कारियों को भी आरक्षण मिल गया हो । जो जिस कटेगरी में अत्याचार करेगा उसे वैसी ही सजा मिलेगी। 

जब किसी महिला की इज्ज़त लुटती है तो वो पूरी तरह से टूट जाती है । वंही समाज के लोगों का भी पीड़िता के प्रति नजरिया ही बदल जाता है । कई ऐसे भी मामले सामने आए हैं कि रेप की घटनाओं के बाद महिलाओं ने आत्महत्या कर लिया है । फिर आखिर ऐसी स्थिति में सरकार ने उम्र के लिहाज से सजा का प्राविधान क्यों किया ? ...जबकि दोनों तरफ से महिला ही टूटती है ।

मोदी सरकार ने महिलाओं पर होने वाले रेप की घटनाओं में संशोधन तो किया लेकिन महिलाओं को उम्र के हिसाब से बांट दिया । चाहे वो छोटी बच्ची हो या फिर एक महिला ...दोनों की पीड़ा, दर्द आदि सब एक ही तो है । मानते हैं कि कुछ घटनाओं में ऐसा भी देखा गया है कि महिलाएं लिव इन रिलेशन में रहने के बाद या शादी, नौकरी, प्रमोशन आदि का झांसा, देकर के बलात्कार करने का आरोप लगाती हैं । लेकिन ऐसे घटनाओं में अलग प्राविधान बनाया जा सकता है । ऐसी घटनाओं में जो संशोधन किया गया है वो स्वीकार है लेकिन निर्भया जैसे घटनाओं में ..? राह चलती महिला के साथ होने वाली बलात्कार की घटना में ..? क्या इन महिलाओं को भी वही न्याय मिलेगा ..? किसी प्रलोभन में आकर के शोषण का शिकार हो जाने का मामला अलग है और राह चलते महिला का बलात्कार होने की घटना अलग है । सरकार को चाहिए कि महिलाओं उम्र के हिसाब से ना बांटें, बल्कि उनको एक बना के रखे...एक समान समझे और बलात्कार जैसी घटनाओं में चाहे वो गैंग रेप हो या फिर किसी बच्ची या महिलाके साथ रेप हो, रेप की घटनाओं में सिर्फ एक ही सजा होनी चाहिए ।...... 'सजाए मौत' !


फिलहाल ये भी जान लेना आवश्यक है कि सरकार ने बलात्कार की घटनाओं में कानूनी क्या बदलाव किया है - पॉस्को (यौन अपराध से बच्चों की सुरक्षा)

● 12 साल की बच्चियों से रेप पर फांसी की सजा
● 16 साल से छोटी लड़की से गैंगरेप पर उम्रकैद की सज़ा।
●16 साल से छोटी लड़की से रेप पर कम से कम 20 साल की सज़ा
●सभी रेप केस में 6 महीने के भीतर फैसला सुनाना ज़रूरी।
●नए संशोधन के तहत रेप केस की जांच 2 महीने में पूरी करनी होगी।
●अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी।
●महिला से रेप पर सजा 7 साल से बढ़कर 10 साल होगी।

( अपना राय जरूर दें )

Wednesday, April 18, 2018

नारी समाज के लिए पुरूष बनता अभिशाप

धैर्य की पराकाष्ठा आखिर कब तक ?

गणेश पाण्डेय 'राज'
---------------------
साहस, संवेदनशील और धैर्य की पराकाष्ठा को अपने में समेटे हुए आज की नारी किस हाल में जी रही है, इसपर प्रत्येक नागरिक को विचार करने की नितांत आवश्यकता है । हम 21वीं युग में जी रहे हैं । आज समाज बदलाव पर है । हम चांद सितारों की बात करते हैं । लेकिन जब वंही एक नारी की बात आती है तो उसे निर्बल, लाचार और ना जाने किन किन शब्दों से हम सब सम्बोधित करने लगते हैं । जिस नारी के मान सम्मान के लिए आये दिन हम सब सड़कों पर बिना सोचे समझे निकल जाते हैं । उस नारी कि हम व्यक्तिगत तौर पर कितना सम्मान करते हैं इसका भी मूल्यांकन स्वयं करना भी नितान्त आवश्यक है । वर्तमान समय में नारी सबल है, ये सिर्फ मान्यता है । जो हम सब ने बना रखी है । मान्यता इस लिए क्योंकि व्यक्तिगत तौर पर हम नारी का सम्मान करने का सिर्फ ढोंग करते हैं ।

आज और कल में बहुत परिवर्तन आया है । समाज का निचला तबका भी ऊंचाईयों को छूना चाहता है । लेकिन इस समाज ने नारी को आज भी ऊपर उठने नही दिया । कारण - क्योंकि वो आज भी नारी समाज को अबला समझता है । क्या ऐसे हम एक अच्छे समाज की परिकल्पना कर सकते हैं । बिल्कुल नही । अतिति काल से सरकारें, समाज और विभिन्न संगठन नारी सशक्तिकरण की बातें करती आ रही है । मैं पूछना चाहता हूं अगर अतिति काल से नारी सशक्तिकरण की मुहिम चलाई जा रही है तो नारी आज भी बेबस लाचार क्यों है ..? क्यों आज भी उसको पुरुषों के बराबरी का हक़ नही मिल पाया..? आज भी देश में ऐसे कई क्षेत्र व गांव है जंहा पर लड़कियों को वो शिक्षा या वो आजादी नही मिल पाई है जो पुरुष जाति को मिला है । हम इसे ही समानता की बातें कहते हैं । हमारे संविधान में भी समानता के अधिकार की बातें की गई हैं फिर ऐसा क्यों है कि 21वीं सदी में पहुंचने के बाद भी नारी सशक्त नही हो पाई ..? नारी खुले आसमान में सांसे नही ले सकती...? नारी हम पुरुषों से कंधा मिला कर के नही चल सकती ..? मैंने जब इन अनगिनत सवालों का जबाब ढूंढा तो इसका सिर्फ एक ही जबाब मिला ....पुरुष ..? जो अपने मद में आज भी नारी के अधिकारों और उसकी स्वतंत्रता को रौंद रहा है और यह कर के अपने आपको गर्वान्वित महसूस कर रहा है । 

आज जिस तेजी से बलात्कर, नारी शोषण और स्कूल, कॉलेजों में लड़कियों के मासूमियत के साथ खिलवाड़ हो रहा है उससे अभिभाव पूरी तरह से डरा और सहमा हुआ है । यही वजह है कि अभिभावक जब इन मासूम लड़कियों के पर निकलने लगते हैं तो वसूलों, पाबन्दियों की कैंची से इसे कुतर देता है । जिससे लड़कियां स्वयं के सारे अरमानों को जला कर राख कर देती है और खुद को किसी पंछी की तरह अपने को पिंजरे में बंद कर लेती है । ऐसा इसीलिए है क्योंकि पुरुष जाति अपनी परिभाषा स्वयं बदल डाली है । अपनी ताकत ऐसे जगहों पर दिखा कर आज पुरुष अपने आप को बलवान साबित करने में लगा हुआ है । 


हमारे देशवासी भी जब कोई बलात्कार या दुराचार की घटना घटती है तो कैंडिल जुलूस, धरना प्रदर्शन आदि करने के लिए तत्पर रहती है ...लेकिन इन्ही देशवासियों में से किसी एक के सामने कोई ऐसा घटना घट रही हो तो मुँह फेर लेते हैं । अभी हाल में ही उन्नाव, कठुआ, गुजरात, महाराष्ट्र, गोरखपुर आदि जगहों से बलात्कर की घटनाएं सुनने में आई । जो बहुत ही शर्मनाक है । अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश गोरखपुर जनपद के एक थाना क्षेत्र में तो मंदबुद्धि, विकलांग व नाबालिग लड़की के साथ एक युवक ने बलात्कर की घटना को अंजाम दिया । क्या पुरुष समाज इतना गिर गया है ..? क्या पुरुष समाज इन नारी के सम्मान से खिलवाड़ करके अपनी ताकत दिखाना चाह रहा है ..? 

खैर ! एक बात और ! जिस प्रकार आतंकवादियों का कोई मजहब नही होता ठीक उसी प्रकार से बलात्कारियों का भी कोई मजहब नही होता । ये बात किसी को भूलनी नही चाहिए । पीड़ित नारी किसी भी धर्म जाति की क्यों ना हो , हमें ये नही भूलना चाहिए कि वह सबसे पहले हिंदुस्तानी है । हिंदुस्तान की किसी भी नारी पर कोई आंच आता है तो समझ जाओ पुरुषों कि तुम्हारे देश पर आंच आता है । 

जब निर्भया कांड हुआ था और पूरा देश कैंडिल जुलूस निकाली थी तब ये एहसास हुआ था कि अब ऐसी घटनाएं देश में नही होंगी । क्योंकि पूरा देश एक साथ खड़ा था । मुझे विश्वास है कि वो पुरुष भी उस वक़्त जुलूस में जरूर शामिल हुए होंगे जिनका मन नारी जगत को लेकर गन्दी भावनाएं हैं । लेकिन वो उस वक़्त अपने अंदर छिपे हवस के दैत्य का समुचित रूप से संहार नही कर सके, अगर किये होते तो शायद ऐसे घटनाओं के बारे में सुनने को नही मिलता । जब  तक पुरुष समाज अपने अंदर छिपे हवस रूपी दैत्य को मार नही देता तब तक ऐसी घटनाओं से समाज को निजात नही मिलने वाला । 

 अंत में ये चार पंक्तियां सभी पुरुषों को समर्पित -

ताकत नही है इसमें कि नारी पर तुम अत्याचार करो..

छेड़ो इनको और इनका तुम बलात्कार करो..
पुरुष हो गर तुम, तो फिर पुरुषार्थ करो..
नारी है दुर्गा शक्ति, इनका हरदम तुम सत्कार करो ..!


(कम्मेंट बॉक्स में अपनी राय जरूर दें)

सपने सच हों सब.....मेरे तेरे

सपने सच हों सब.....मेरे तेरे
गणेश पाण्डेय 'राज'




Friday, April 6, 2018

ऐसे आएगी आपके जीवन में खुशिया

एक विचार - गणेश चन्द पाण्डेय 'राज'
















(कमेंट बॉक्स में अपनी राय अवश्य दें)

Thursday, April 5, 2018

20 साल बाद जो हुआ वो कंहा तक सही...?

20 साल बाद जो हुआ वो कंहा तक सही...?

गणेश चन्द पाण्डेय
------------------

कहते हैं कि वक़्त के आगे सब मजबूर होते हैं ..और जब उसी वक़्त को आने में 20 साल लग जाये तो..क्या होगा सिर्फ सोच कर देखिए । कर्मों का फल तो मिलता है चाहे वो देर से ही क्यों ना मिले । आज जो कुछ भी जोधपुर की अदालत में हुआ ...वो ना जाने कितनों को दुःखी कर गया होगा । जिनमें से एक मैं भी हूँ ..? मेरे दुःखी होने का कारण ये नही की सलमान को जेल हो गयी ...दुख इस बात का है कि एक नेक इंसान सलाखों के पीछे चला गया वो भी दो काले हिरण के शिकार में ...! आश्चर्य नही होता ? ना जाने कितने जानवर सलमान खान के बदौलत आज जिंदा होंगे और क्या देश में प्रतिबंधित जानवरों का शिकार नही किया जा रहा है ..? ये महत्वपूर्ण सवाल है ...जिसके बारे में आपको सोचना है ।

खैर ! सलमान खान कौन है और क्या करते हैं ? इसको बताने की कोई आवश्यकता नही । इसको तो बच्चा बच्चा जानता है । लेकिन सलमान खान एक अभिनेता के साथ अच्छे इंसान हैं । ना जाने कितने काले हिरण मारे गए होंगे इस देश में? लेकिन इसका सुधि कौन ले ..? अगर कोर्ट ने सलमान खान को सजा सुनाई है तो कंही ना कंही कोई सच्चाई तो होगी ही । इसलिए तो सजा सुनाने में 20 साल लग गए । मैं मानता हूं सलमान खान विवादों में रहे हैं लेकिन उससे कहीं अच्छे कार्यों को लेकर के भी चर्चा में रहे हैं। कंही ना कहीं सलमान करोड़ों लोगों के दिल में बसते हैं । साथ ही ना जाने उनके बदौलत कितनो की जिंदगी का गुजर बसर होता आया है....!

(अपनी राय कम्मेंट में जरूर दें)

Wednesday, March 28, 2018

देश के हर एक नागरिक को ये वीडियो देखना जरूरी है ।

देश के हर एक नागरिक को ये वीडियो देखना जरूरी है । 
गणेश चन्द पाण्डेय
-----------------

पूरा वीडियो अवश्य देखें ।

Sunday, March 25, 2018

जब सरकारी शौचालय बन जाये स्टोर रूम

स्वच्छता मिशन को मुँह चिढ़ा रहें ओडीएफ शौचालय

गणेश चन्द पाण्डेय
------------------------

■कहीं समान तो कंही पुआल रखने का अड्डा बना ओडीएफ शौचालय
■विचारों में परिवर्तन से ही होगा देश स्वच्छ
-----------------------

हम सबने फ़िल्म निर्देशक नारायण सिंह के निर्देशन में बनी फ़िल्म 'टॉयलेट: एक प्रेम कथा' अवश्य देखी होगी । जो देश में चल रहे स्वच्छता मिशन पर आधारित है । जिसमें समाज के उन पहलुओं को दिखाया गया है । जिससे सरकार को आये दिन दो चार होना पड़ता है । फ़िल्म के नायक अक्षय कुमार जब अपनी पत्नी के लिए शौचालय का निर्माण कराना चाहते हैं तो उनके सामने रीति रिवाज के साथ समाज भी अड़चन के रूप में सामने खड़ा हो जाता है । वंही सिस्टम से लड़ने से लगायत नायक नायिका फ़िल्म में समाज व समाज द्वारा बनाये गए रीति रिवाज से लड़ते हुए दिखाई देते हैं । अंततः उनका सपना पूरा होता है और सरकारी सिस्टम, समाज के रीति रिवाजों पर विजय पा लेते हैं और शौचालय का सपना सच हो जाता है । फ़िल्म में अक्षय कुमार एक टीवी एंकर को दे रहे इंटरव्यू में एक संवाद बोलते हैं जिसपर गौर करने लायक है । अक्षय कुमार बोलते हैं कि सरकार ने तो शौचालय बनवा दिया लेकिन इसका इस्तेमाल कैसे करना है, नही समझाया ?

आज पूरे देश में खुले में शौचमुक्त भारत के लिए अभियान छिड़ा है । लेकिन ये कंहा तक सार्थक हो रहा है ? ये एक महत्वपूर्ण सवाल है । देखा जाए तो सरकार पूरी कोशिश कर रही है कि समय सीमा  के भीतर ये लक्ष्य प्राप्त कर ले । लेकिन जबतक ग्रामीण इसमें सहयोग नही करेंगें और अपने आदतों व विचारों में परिवर्तन नही लाएंगे तब तक इस लक्ष्य को प्राप्त करना आसान नही है ।
विगत दिनों उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जनपद के भटहट विकास खण्ड के भ्रमण के दौरान मुझे कुछ ऐसा नजारा मिला जो मुझे आश्चर्य चकित कर दिया । वैसे ये मामला कोई नया नही है लेकिन सरकार की योजनाओं को ग्रामीण किस प्रकार से उपयोग में लाते हैं और सरकारी  कर्मचारी अपना कार्य कंहा तक ईमानदारी से पूरा करते हैं, इसे लिखना मैं जरूर समझा क्योंकि जागरूकता सबसे ज्यादे जरूरी है । गोरखपुर जनपद जो मुख्यमंत्री का गृह जनपद भी है । पूरे जनपद व ब्लाक को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) करने की तैयारी जोरों पर है । गांवों को जल्दी जल्दी ओडीएफ घोषित किया जा रहा है । लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है । वैसे उच्च अधिकारियों के दबाव के चलते विकास खण्ड में शौचालय बनवाने का कार्य प्रगति पर है, लेकिन ब्लाक कर्मचारी व प्रधान शायद ये भूल गए कि इसका सख्ती से इस्तेमाल करना भी ग्रामीणों को सिखाना होगा । फिलहाल कर्मचारियों के ऐसा ना करने से आज ग्रामीण शौचालयों का इस्तेमाल घरेलू समान, पुआल रखने व दुकान खोलने आदि के प्रयोग में ला रहे हैं ।

महात्मा गांधी जी ने देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई थी और उनकी इच्छा भी थी कि भारत देश स्वच्छ व निर्मल हो । इसी को ध्यान में रखकर 2 अक्टूबर 2014 गांधी जयंती पर मोदी सरकार ने देश को स्वच्छ बनाने के लिए स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अंतर्गत खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) के लिए गांव - गांव, घर - घर शौचालय बनाने का मुहिम चलाया । जिसके अंतर्गत जनपद से लेकर के प्रत्येक ब्लाक के प्रत्येक गांव के घर घर शौचालय बनाये जा रहे हैं । वंही समय सीमा के भीतर लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ब्लाक के कर्मचारी लगे हुए हैं । शौचालय सम्बंधित जानकारी भी दी जा रही है लेकिन जो हाल भटहट ब्लाक का है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि बन रहे शौचालय स्वच्छता मिशन को मुँह चिढ़ा रहे हैं । गांव में शौचालय चेक किया गया तो पाया की किसी ने शौचालय के आगे पुआल आदि रख दी, तो किसी ने अपने शौचालय में घरेलू सामान व टूटे दरवाजे से भर दिए ।

भटहट विकास खण्ड के ग्रामसभा फुलवरिया के बखरैति टोला जंहा पर ऐसा नजारा देखने को मिला जो स्वच्छता मिशन की धज्जियां उड़ा रहा है । इस गांव में कुछ ऐसे शौचालय दिखे जंहा एक शौचालय के सामने पुआल तो वंही दूसरे शौचालय में घरेलू सामान व टूटा हुआ दरवाजा आदि रखा गया है । वंही ब्लाक के कर्मचारियों द्वारा इसको ओडीएफ घोषित भी कर दिया गया है । जबकि नियमतः उसी गांव को ओडीएफ घोषित किया जा सकता है जंहा के प्रत्येक व्यक्ति शौचालय का प्रयोग करता हो । शौचालयों में घरेलू सामान आदि जंहा रखा जा रहा है वंही बिना जांचे ब्लाक के अधिकारियों द्वारा ओडीएफ घोषित कर देना कंहा तक उचित है ? इस सम्बंध में कुछ कहने की जरूरत नही है क्योंकि सरकारी पैसों का किस प्रकार से प्रयोग में लाया जाता है । हम सब जानते हैं ।

साथ ही एक अन्य पहलू पर भी विचार करना अनिवार्य है । सबसे महत्वपूर्ण सवाल : आखिर सरकार इतनी योजनाएं किसके लिए लाती है ? इस प्रश्न का आसानी से जबाब कोई भी दे सकता है - देश और देश के प्रत्येक नागरिक के लिए । हां ...यही सही जबाब है । फिर हम सब क्यों स्वयं के साथ अपने आसपास के लोगों को जागरूक नही करते ? हम ये भी अच्छी तरह से जानते हैं कि सरकार जो सुविधाएं , योजनाएं हम सब के लिए लागू करती है...उसपर व्यय होने वाली धनराशि भी हम लोगों के जेबों से ही जाती है । फिर भी योजना जब हमारे दरवाजे पर आती है तो बस उसका गलत तरीके से उपयोग में लाते हैं । सरकार अगर देश को स्वच्छ करने के प्रयास में है तो उसके इस कार्य में हमारा कंहा तक सहयोग है ? इसका भी मूल्यांकन हमको ही करना है । अगर सरकार के द्वारा बनाये गए शौचालयों का उपयोग हम सब समान रखने, दुकान खोलने या अन्य किसी कार्य में लाते हैं तो सरकार की धनराशि का कहीं ना कंही दुरुपयोग हम कर रहे हैं । हमें स्वयं जागरूक होना पड़ेगा और सहयोग करना पड़ेगा । 

मेरे एक दोस्त अभी हाल ही में जापान की शैर पर गए हुए थे । जब वो वंहा पहुंचें तो उनकी आंखें खुली की खुली रह गयी । उन्होंने अपने अनुभव बांटते हुए बताया कि यंहा हर तरफ स्वच्छता ही दिख रही है । कंही भी गंदगी का नामो निशान नही है । वंही शांति भी कमाल का है ना ही गाडियों के हॉर्न की आवाज सुनाई देती है और ना ही लोगों के शोरगुल । उन्होंने एक और बात भी कही मुझसे कि जापान देश की तरह स्वच्छ बनने में अपने देश को अभी काफी वर्ष लगेंगे । जरा सोचिए ! हम सब कितने पीछे हैं । 70 वर्षों में जंहा अन्य देश आसमान की बुलंदियों को छू रहे हैं वंही आज भी हम सब घिसे पिटे दिन गुजारने में लगे हैं । सरकार इस देश को स्वच्छ बनाने के लिए पहला कदम उठाया है और इस कदम के साथ जब तक हम सब कदम नही बढ़ाएंगे ...तब तक देश को स्वच्छ और निर्मल बना पाना नामुमकिन होगा ।

खैर ! वंही जब उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जनपद के भटहट ब्लाक के एडीओ पंचायत जगवंश कुशवाहा से ब्लाक में चलाए जा रहे ओडीएफ के सम्बंध में जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि पूरे भटहट ब्लाक में 35 हजार शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया है । जिसमें से 80 प्रतिशत शौचालयों का निर्माण कार्य हो चुका है और 20 गाँव ओडीएफ घोषित किये जा चुके हैं । जिसमें से एक बखरैति गांव भी है । जब बखरैति गांव में शौचालयों की दुर्दशा और ग्रामीणों द्वारा उपयोग में ना लाने की बात कही गयी तो उन्होंने बताया कि जब तक निगरानी गांव में की गई तब तक सभी ग्रामीण शौचालय का उपयोग करते हुए मिले । देखिए ! जब तक ग्रामीण अपने विचारों में परिवर्तन नही लाते हैं तब तक इससे मुक्ति नही मिल सकती । संज्ञान में ऐसा मामला आएगा तो शौचालय लाभार्थियों के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही की जायेगी ।

यंहा यह भी बतादें कि सरकार ने 2 अक्टूबर 2019, महात्मा गांधी के जन्म की 150 वीं वर्षगांठ तक ग्रामीण भारत में 1.96 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के 1.2 करोड़ शौचालयों का निर्माण करके खुले में शौंच मुक्त भारत (ओडीएफ) को हासिल करने का लक्ष्य रखा है। खैर ! ये देखना होगा कि ग्रामीण, ब्लाक कर्मचारी व उच्चाधिकारी इस लक्ष्य को प्राप्त करने में अपनी कहाँ तक भूमिका अदा करते हैं । अंत मे एक खुशी की बात यह है कि देश का पहला राज्य सिक्किम ओडीएफ घोषित हो चुका है ।

( इस लेख पर अपनी राय अवश्य दें, लेख में कोई त्रुटि हो तो मुझे अवगत कराना ना भूलें )



माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती

माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती, यहाँ आदमी आदमी से जलता है.. दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं...