Saturday, April 28, 2018

कंही डरावना ना हो इस बार यूपी बोर्ड का परीक्षा परिणाम

यूपी बोर्ड परिणाम को लेकर काफी उत्साहित हैं छात्र

गणेश पाण्डेय 'राज'
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यूपी बोर्ड की परीक्षा परिणाम 29 अप्रैल को दोपहर 12 बजे के बाद घोषित किया जाएगा । जंहा एक तरफ हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा में शामिल छात्र छात्राएं अपने परीक्षा परिणाम को लेकर के उत्साहित है वंही दूसरी तरफ सशंकित भी है क्योंकि इस बार योगी सरकार ने नकल विहीन परीक्षा कराने के लिए खासा इंतेजाम कर रखा था । जिसके चलते शिक्षा माफियाओं का कमर टूट गया था और उनका परीक्षा को हाईजैक करने का सारा इंतेजाम विफल हो गया था । वंही जिसने कानून को हाथ में लेकर के नकल कराने की कोशिश की वो सलाखों के पीछे भी भेजे जा चुके हैं । इतनी कड़क व्यवस्था पहली बार किसी बोर्ड परीक्षा में देखा गया । विदित हो कि सीसीटीवी कैमरे के नजर में यूपी बोर्ड की परीक्षा होने के कारण लाखों बच्चों ने परीक्षा ही छोड़ दिया था । वंही योगी सरकार पर भी यूपी बोर्ड के परीक्षा परिणाम को शत- प्रतिशत घोषित करने का दबाव भी रहेगा । फिलहाल रविवार को छुट्टी का दिन होने के कारण बच्चे और अभिभावकों को परीक्षा परिणाम आने का इन्तेजार बेसब्री से रहेगा ।

यूपी बोर्ड के हाई स्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा परिणाम जानने के लिए लिंक पर क्लिक करें (29 अप्रैल दिन के 12 बजे के बाद) -

http://upresults.nic.in

Saturday, April 21, 2018

पहले देश का बंटवारा, अब रेप का बंटवारा ..?

पहले देश का बंटवारा, अब रेप का बंटवारा ..?

देखा जाए तो ऐसा लगता है कि बलात्कारियों को भी आरक्षण मिल गया हो । जो जिस कटेगरी में अत्याचार करेगा उसे वैसी ही सजा मिलेगी।

गणेश पाण्डेय 'राज'
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पिछले कुछ महीनों में जिस तरीके से बच्चियों संग रेप की घटनाओं को अंजाम दिया गया । उससे ना सिर्फ देश हिल गया बल्कि विदेशों में भी खूब चर्चा का विषय बना रहा । देश में कैंडिल मार्च, पोस्टर सेलेब्रिटीज़ अभिनेत्रियों सहित देश के हर एक नागरिक ने इस घिनौने कृत को जड़ से खत्म करने की आवाज उठाई । वैसे तो इसका आगाज पांच वर्ष पूर्व निर्भया कांड के दौरान ही हो गया था लेकिन शायद उस वक़्त बहुत से लोग सड़कों पर नही उतर पाए और सरकार ने भी ध्यान नही दिया । फिलहाल कठुआ कांड में फ़िल्म अभिनेत्रियों से लगायत गांव गांव में लोगों ने कैंडिल मार्च कर सरकार से न्याय की गुहार लगाई । वंही मोदी सरकार ने भी इस मुद्दे को गम्भीरता से लिया और कानून में बदलाव करते हुए 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार करने पर सजा-ए-मौत का ऐलान कर दिया । लेकिन बलात्कार तो बलात्कार है चाहे वो बच्ची के साथ हो या फिर महिला के साथ । इस घिनौने केश में तो मौत की ही सजा होनी चाहिये ?

भारत देश सन 1947 में दो देशों में बंट गया । भारत और पाकिस्तान । आज भी हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं कि अपना देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ । उस वक़्त बाहुल्य सम्प्रदाय को ब्रिटिश सरकार ने दो भागों में विभाजित कर दिया था । लेकिन 2018 में 70 साल के बाद फिर एक बार महिलाओं पर हो रहे घिनौने अत्याचार बलात्कार जैसी घटनाओं को उम्र के हिसाब से बांट दिया गया । वंही देखा जाए तो ऐसा लगता है कि बलात्कारियों को भी आरक्षण मिल गया हो । जो जिस कटेगरी में अत्याचार करेगा उसे वैसी ही सजा मिलेगी। 

जब किसी महिला की इज्ज़त लुटती है तो वो पूरी तरह से टूट जाती है । वंही समाज के लोगों का भी पीड़िता के प्रति नजरिया ही बदल जाता है । कई ऐसे भी मामले सामने आए हैं कि रेप की घटनाओं के बाद महिलाओं ने आत्महत्या कर लिया है । फिर आखिर ऐसी स्थिति में सरकार ने उम्र के लिहाज से सजा का प्राविधान क्यों किया ? ...जबकि दोनों तरफ से महिला ही टूटती है ।

मोदी सरकार ने महिलाओं पर होने वाले रेप की घटनाओं में संशोधन तो किया लेकिन महिलाओं को उम्र के हिसाब से बांट दिया । चाहे वो छोटी बच्ची हो या फिर एक महिला ...दोनों की पीड़ा, दर्द आदि सब एक ही तो है । मानते हैं कि कुछ घटनाओं में ऐसा भी देखा गया है कि महिलाएं लिव इन रिलेशन में रहने के बाद या शादी, नौकरी, प्रमोशन आदि का झांसा, देकर के बलात्कार करने का आरोप लगाती हैं । लेकिन ऐसे घटनाओं में अलग प्राविधान बनाया जा सकता है । ऐसी घटनाओं में जो संशोधन किया गया है वो स्वीकार है लेकिन निर्भया जैसे घटनाओं में ..? राह चलती महिला के साथ होने वाली बलात्कार की घटना में ..? क्या इन महिलाओं को भी वही न्याय मिलेगा ..? किसी प्रलोभन में आकर के शोषण का शिकार हो जाने का मामला अलग है और राह चलते महिला का बलात्कार होने की घटना अलग है । सरकार को चाहिए कि महिलाओं उम्र के हिसाब से ना बांटें, बल्कि उनको एक बना के रखे...एक समान समझे और बलात्कार जैसी घटनाओं में चाहे वो गैंग रेप हो या फिर किसी बच्ची या महिलाके साथ रेप हो, रेप की घटनाओं में सिर्फ एक ही सजा होनी चाहिए ।...... 'सजाए मौत' !


फिलहाल ये भी जान लेना आवश्यक है कि सरकार ने बलात्कार की घटनाओं में कानूनी क्या बदलाव किया है - पॉस्को (यौन अपराध से बच्चों की सुरक्षा)

● 12 साल की बच्चियों से रेप पर फांसी की सजा
● 16 साल से छोटी लड़की से गैंगरेप पर उम्रकैद की सज़ा।
●16 साल से छोटी लड़की से रेप पर कम से कम 20 साल की सज़ा
●सभी रेप केस में 6 महीने के भीतर फैसला सुनाना ज़रूरी।
●नए संशोधन के तहत रेप केस की जांच 2 महीने में पूरी करनी होगी।
●अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी।
●महिला से रेप पर सजा 7 साल से बढ़कर 10 साल होगी।

( अपना राय जरूर दें )

Wednesday, April 18, 2018

नारी समाज के लिए पुरूष बनता अभिशाप

धैर्य की पराकाष्ठा आखिर कब तक ?

गणेश पाण्डेय 'राज'
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साहस, संवेदनशील और धैर्य की पराकाष्ठा को अपने में समेटे हुए आज की नारी किस हाल में जी रही है, इसपर प्रत्येक नागरिक को विचार करने की नितांत आवश्यकता है । हम 21वीं युग में जी रहे हैं । आज समाज बदलाव पर है । हम चांद सितारों की बात करते हैं । लेकिन जब वंही एक नारी की बात आती है तो उसे निर्बल, लाचार और ना जाने किन किन शब्दों से हम सब सम्बोधित करने लगते हैं । जिस नारी के मान सम्मान के लिए आये दिन हम सब सड़कों पर बिना सोचे समझे निकल जाते हैं । उस नारी कि हम व्यक्तिगत तौर पर कितना सम्मान करते हैं इसका भी मूल्यांकन स्वयं करना भी नितान्त आवश्यक है । वर्तमान समय में नारी सबल है, ये सिर्फ मान्यता है । जो हम सब ने बना रखी है । मान्यता इस लिए क्योंकि व्यक्तिगत तौर पर हम नारी का सम्मान करने का सिर्फ ढोंग करते हैं ।

आज और कल में बहुत परिवर्तन आया है । समाज का निचला तबका भी ऊंचाईयों को छूना चाहता है । लेकिन इस समाज ने नारी को आज भी ऊपर उठने नही दिया । कारण - क्योंकि वो आज भी नारी समाज को अबला समझता है । क्या ऐसे हम एक अच्छे समाज की परिकल्पना कर सकते हैं । बिल्कुल नही । अतिति काल से सरकारें, समाज और विभिन्न संगठन नारी सशक्तिकरण की बातें करती आ रही है । मैं पूछना चाहता हूं अगर अतिति काल से नारी सशक्तिकरण की मुहिम चलाई जा रही है तो नारी आज भी बेबस लाचार क्यों है ..? क्यों आज भी उसको पुरुषों के बराबरी का हक़ नही मिल पाया..? आज भी देश में ऐसे कई क्षेत्र व गांव है जंहा पर लड़कियों को वो शिक्षा या वो आजादी नही मिल पाई है जो पुरुष जाति को मिला है । हम इसे ही समानता की बातें कहते हैं । हमारे संविधान में भी समानता के अधिकार की बातें की गई हैं फिर ऐसा क्यों है कि 21वीं सदी में पहुंचने के बाद भी नारी सशक्त नही हो पाई ..? नारी खुले आसमान में सांसे नही ले सकती...? नारी हम पुरुषों से कंधा मिला कर के नही चल सकती ..? मैंने जब इन अनगिनत सवालों का जबाब ढूंढा तो इसका सिर्फ एक ही जबाब मिला ....पुरुष ..? जो अपने मद में आज भी नारी के अधिकारों और उसकी स्वतंत्रता को रौंद रहा है और यह कर के अपने आपको गर्वान्वित महसूस कर रहा है । 

आज जिस तेजी से बलात्कर, नारी शोषण और स्कूल, कॉलेजों में लड़कियों के मासूमियत के साथ खिलवाड़ हो रहा है उससे अभिभाव पूरी तरह से डरा और सहमा हुआ है । यही वजह है कि अभिभावक जब इन मासूम लड़कियों के पर निकलने लगते हैं तो वसूलों, पाबन्दियों की कैंची से इसे कुतर देता है । जिससे लड़कियां स्वयं के सारे अरमानों को जला कर राख कर देती है और खुद को किसी पंछी की तरह अपने को पिंजरे में बंद कर लेती है । ऐसा इसीलिए है क्योंकि पुरुष जाति अपनी परिभाषा स्वयं बदल डाली है । अपनी ताकत ऐसे जगहों पर दिखा कर आज पुरुष अपने आप को बलवान साबित करने में लगा हुआ है । 


हमारे देशवासी भी जब कोई बलात्कार या दुराचार की घटना घटती है तो कैंडिल जुलूस, धरना प्रदर्शन आदि करने के लिए तत्पर रहती है ...लेकिन इन्ही देशवासियों में से किसी एक के सामने कोई ऐसा घटना घट रही हो तो मुँह फेर लेते हैं । अभी हाल में ही उन्नाव, कठुआ, गुजरात, महाराष्ट्र, गोरखपुर आदि जगहों से बलात्कर की घटनाएं सुनने में आई । जो बहुत ही शर्मनाक है । अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश गोरखपुर जनपद के एक थाना क्षेत्र में तो मंदबुद्धि, विकलांग व नाबालिग लड़की के साथ एक युवक ने बलात्कर की घटना को अंजाम दिया । क्या पुरुष समाज इतना गिर गया है ..? क्या पुरुष समाज इन नारी के सम्मान से खिलवाड़ करके अपनी ताकत दिखाना चाह रहा है ..? 

खैर ! एक बात और ! जिस प्रकार आतंकवादियों का कोई मजहब नही होता ठीक उसी प्रकार से बलात्कारियों का भी कोई मजहब नही होता । ये बात किसी को भूलनी नही चाहिए । पीड़ित नारी किसी भी धर्म जाति की क्यों ना हो , हमें ये नही भूलना चाहिए कि वह सबसे पहले हिंदुस्तानी है । हिंदुस्तान की किसी भी नारी पर कोई आंच आता है तो समझ जाओ पुरुषों कि तुम्हारे देश पर आंच आता है । 

जब निर्भया कांड हुआ था और पूरा देश कैंडिल जुलूस निकाली थी तब ये एहसास हुआ था कि अब ऐसी घटनाएं देश में नही होंगी । क्योंकि पूरा देश एक साथ खड़ा था । मुझे विश्वास है कि वो पुरुष भी उस वक़्त जुलूस में जरूर शामिल हुए होंगे जिनका मन नारी जगत को लेकर गन्दी भावनाएं हैं । लेकिन वो उस वक़्त अपने अंदर छिपे हवस के दैत्य का समुचित रूप से संहार नही कर सके, अगर किये होते तो शायद ऐसे घटनाओं के बारे में सुनने को नही मिलता । जब  तक पुरुष समाज अपने अंदर छिपे हवस रूपी दैत्य को मार नही देता तब तक ऐसी घटनाओं से समाज को निजात नही मिलने वाला । 

 अंत में ये चार पंक्तियां सभी पुरुषों को समर्पित -

ताकत नही है इसमें कि नारी पर तुम अत्याचार करो..

छेड़ो इनको और इनका तुम बलात्कार करो..
पुरुष हो गर तुम, तो फिर पुरुषार्थ करो..
नारी है दुर्गा शक्ति, इनका हरदम तुम सत्कार करो ..!


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सपने सच हों सब.....मेरे तेरे

सपने सच हों सब.....मेरे तेरे
गणेश पाण्डेय 'राज'




Friday, April 6, 2018

ऐसे आएगी आपके जीवन में खुशिया

एक विचार - गणेश चन्द पाण्डेय 'राज'
















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Thursday, April 5, 2018

20 साल बाद जो हुआ वो कंहा तक सही...?

20 साल बाद जो हुआ वो कंहा तक सही...?

गणेश चन्द पाण्डेय
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कहते हैं कि वक़्त के आगे सब मजबूर होते हैं ..और जब उसी वक़्त को आने में 20 साल लग जाये तो..क्या होगा सिर्फ सोच कर देखिए । कर्मों का फल तो मिलता है चाहे वो देर से ही क्यों ना मिले । आज जो कुछ भी जोधपुर की अदालत में हुआ ...वो ना जाने कितनों को दुःखी कर गया होगा । जिनमें से एक मैं भी हूँ ..? मेरे दुःखी होने का कारण ये नही की सलमान को जेल हो गयी ...दुख इस बात का है कि एक नेक इंसान सलाखों के पीछे चला गया वो भी दो काले हिरण के शिकार में ...! आश्चर्य नही होता ? ना जाने कितने जानवर सलमान खान के बदौलत आज जिंदा होंगे और क्या देश में प्रतिबंधित जानवरों का शिकार नही किया जा रहा है ..? ये महत्वपूर्ण सवाल है ...जिसके बारे में आपको सोचना है ।

खैर ! सलमान खान कौन है और क्या करते हैं ? इसको बताने की कोई आवश्यकता नही । इसको तो बच्चा बच्चा जानता है । लेकिन सलमान खान एक अभिनेता के साथ अच्छे इंसान हैं । ना जाने कितने काले हिरण मारे गए होंगे इस देश में? लेकिन इसका सुधि कौन ले ..? अगर कोर्ट ने सलमान खान को सजा सुनाई है तो कंही ना कंही कोई सच्चाई तो होगी ही । इसलिए तो सजा सुनाने में 20 साल लग गए । मैं मानता हूं सलमान खान विवादों में रहे हैं लेकिन उससे कहीं अच्छे कार्यों को लेकर के भी चर्चा में रहे हैं। कंही ना कहीं सलमान करोड़ों लोगों के दिल में बसते हैं । साथ ही ना जाने उनके बदौलत कितनो की जिंदगी का गुजर बसर होता आया है....!

(अपनी राय कम्मेंट में जरूर दें)

माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती

माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती, यहाँ आदमी आदमी से जलता है.. दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं...