Saturday, March 10, 2018

योगी के लोकप्रियता के आगे आसान नही इतिहास बदलना


योगी के लोकप्रियता के आगे आसान नही इतिहास बदलना

गणेश चन्द पाण्डेय
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गोरखपुर सदर के संसदीय सीट पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं । राजनीत से जुड़ा हर एक व्यक्ति अपने अपने स्तर से जोड़ घटना करने में लगा है । वंही इस सीट का इतिहास बदलने के लिए विपक्षियों में गठबंधन की भी खूब चर्चाएं चल रही हैं । संसदीय सीट का ये उपचुनाव जंहा भाजपा के लिए आनबान से जुड़ा है तो दूसरी तरफ विपक्ष इस सीट को हांसिल कर अपना अपना खोया हुआ आत्मविश्वास पुनः पाना चाह रही है । इसीलिए तो सारी विपक्षीय पार्टियां एक हो गयी हैं ।

अगर इतिहास के पन्नो को पलटा जाय तो हिंदुओं के हितों की राजनीति करने वाले गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर का कब्जा रहा है । गोरखपुर संसदीय सीट पर हिन्दू महासभा और भारतीय जनता पार्टी के बैनर तले गोरखनाथ मंदिर के महंथ और उत्तराधिकारीयों ने अधिकतम समय काबिज रह कर एक नया इतिहास बना दिया है । जिसको बदलना नामुमकिन सा है । वंही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जो क्षवि गोरखपुर में है उसको देखते हुए गोररक्ष नगरी के संसदीय सीट का इतिहास बदलना आसान नजर नही आ रहा है । 

गौरतलब है कि इस सीट पर उपचुना का यह दूसरा अवसर है। उपचुना का पहला अवसर 1970 में बहुत ही दुःखद कारणों से हुआ था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे से खाली हुई गोरखपुर संसदीय सीट पर मंदिर से जीतने वाले पहले उम्मीदवार महंत दिग्विजय नाथ थे। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में 1967 में विजय हासिल की थी और 1970 तक वह इस सीट से सांसद रहे। 1970 के चुनाव में उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में चुनाव जीते थे।

संसदीय सीटों पर अगर हुकूमत की बात करें तो करीब 35 वर्ष तक गोरक्षापीठाधीश्वरों ने ही गोरखपुर संसदीय सीट पर निरंतर जीत हासिल किया है । मंदिर का प्रभाव पूरे पूर्वांचल में इतना अधिक है कि गोरखपुर के आसपास के जनपदों की संसदीय सीटों पर भी इसका असर रहता है । वंही अगर हम गोरखपुर क्षेत्र के विकास की बात करें तो विकास का सम्पूर्ण श्रेय गोरक्षपीठाधीश्वरों के ही नाम है। 1967 में पहली बार हिन्दू महासभा के बैनर तले महन्त दिग्विजयनाथ ने धर्म रक्षा के मुद्दे को गम्भीरता से उठा कर सांसद बने थे । 1970 में उनका निधन हो गया। आजादी के बाद पहली बार उपचुनाव का नौबत आया। 1970 के उपचुनाव में उनके शिष्य महंत अवैधनाथ को क्षेत्रीय जनता ने अपना सांसद चुन लिया । इसके बाद 1971, 1977, 1980, 1984, के चुनाव में यह सीट मंदिर के पास नहीं रही। इस दौरान इस संसदीय सीट पर कांग्रेस का राज रहा ।

1989 के लोक सभा का चुनाव भाजपा के बैनर तले अवैधनाथ को फिर क्षेत्र की जनता ने जीत का ताज पहनाया । तब से इस संसदीय सीट पर गोरखनाथ मंदिर का प्रभुत्व कायम रहा । वंही लगातार जीतों के सिलसिले के क्रम को महंत अवैधनाथ के उत्तराधिकारी योगी अदित्यनाथ ने जारी रखा और 1998 से लेकर 2017 के सभी लोकसभा चुनाव पर लगातार जीत दर्ज करते रहे। वंही योगी आदित्यनाथ को कट्टर हिंदूवादी नेता के रूप में जाना जाने लगा । लेकिन उनका दरबार हर एक सम्प्रदाय के लिए खुला रहता है ।

उनके प्रतिभा और राजनीतिक नीतियों के चलते 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में उनको भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने उत्तर प्रदेश का कमान सौंपते हुए महंत योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के पद के लिए चयन कर लिया । जिसके चलते उन्हें सांसद का पद त्यागना पड़ा । योगी के मुख्यमंत्री की कुर्सी सुशोभित करते ही गोरखपुर की जनता खुशी से झूम उठी । वंही कट्टर हिंदूवादी नेताओं में शुमार योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के रूप में चयन किये जाने पर विपक्षीय नेताओं ने खूब तंज भी कसे थे । लेकिन अपने कुशल नेतृत्व और सटीक निर्णयों से सभी विपक्षियों के मुँह बन्द कर दिए । खैर, 1989 से लगातार इस संसदीय सीट पर भाजपा का ही परचम लहराता रहा है। ऐसे में इसका इतिहास बदला एक चुनौती है । वंही योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर के विकास में और तेजी आई है । यंहा पर विभिन्न परियोजनाओं को लाकर के मुख्यमंत्री ने हर वर्ग के दिलों में जगह बना ली है ।

वंही चुनावी सरगर्मी की बात करें तो इसका आकलन इसी से लगाया जा सकता है कि दो पार्टी के बड़े नेता जनसभाएं कर रहे हैं । एक वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ है तो एक पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं । अगर देखा जाए तो इन्ही दोनों के चेहरे को सामने रख कर चुनाव लड़ा जा रहा है । विपक्ष एक जुट हो कर के भाजपा को शिकस्त देने चाह रही है इसीलिए तो सपा, बसपा, निषाद पार्टी, पीस पार्टी आदि सभी एक ही आवाज बोल रहे हैं । लेकिन चर्चाओं पर अगर नजर डालें तो एक होते हुए भी कई वैचारिक मतभेदों से अलग थलग है । सपा ने तो सभी पार्टियों को एक करने में कामयाबी हांसिल तो कर लिया लेकिन कंही ना कंही प्रत्याशी के चयन में चूक गया । जो पार्टी कार्यकर्ताओं को चुभ रहा है । लेकिन पार्टी के मालिक का फैसला सर आंखों पर लेकर कार्यकर्ता चुप हैं । वंही अगर भाजपा की स्थिति का अवलोकन करें तो उसकी स्थिति विपक्ष से सुदृण है । लेकिन मंदिर छोड़ कर एक अन्य को प्रत्याशी घोषित करना उसके लिए भी मुसीबत साबित हो सकता है । फिलहाल भाजपा के पास जो सबसे बड़ी ताकत है वो हैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ । जिनकी लोकप्रियता के आगे सब फीका है । सदैव भारी मतों से विजयी रहे हैं जिसका फायदा भाजपा प्रत्याशी को मिलेगा । वंही गोरखपुर के आसपास के भाजपा विधायक, सांसद इस गोरखपुर लोकसभा के उपचुनाव में जी जान से जुड़े हुए हैं, जो भाजपा के हाथों को और मजबूत कर रहे हैं । दूसरी तरफ कांग्रेस विकास के मुद्दों को लेकर के चुनावी मैदान में है । जिसको जनता बखूबी जानती है । खैर ये चुनावी समीक्षा तो परिणाम आने तक चलता ही रहेेगा । इसके अलावां जनता ने भी तो कुछ सोच रखी होगी ।

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