Sunday, July 15, 2018

पॉलीथिन बैग बैन : कंही फिर ना बन जाये मजाक !

हाल-ए-पॉलीथिन

पॉलीथिन बैग बैन या मजाक, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी लगाया था बैन


- 21 जनवरी 2016 को सपा सरकार ने भी लगाई थी पॉलीथिन बैग पर पूर्ण प्रतिबंध, जिसका नही देखने को मिला असर । 15 जुलाई 2018 को योगी सरकार ने पुनः लगाई पॉलीथिन बैग के प्रयोग पर बैन, कितना होगा असर ?

- छोटे बड़े सभी दुकानों पर दिख रही पॉलीथिन बैग

गणेश पाण्डेय 'राज'
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विकसित देशों के नागरिक स्वच्छता के प्रति अधिक सजग रहते हैं। विकसित देशों में कहीं सड़कों पर कचरा फैला हुआ नहीं दिखाई देता। कचरे की समस्या विकासशील तथा अविकसित देशों में अधिक है। भारत अभी भी एक विकासशील देश ही है। भारत के लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता अब धीरे-धीरे बढ़ रही है। प्रधानमंत्री के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का असर अगले कुछ वर्षों में अवश्य नजर आने लगेगा। नि:संदेह जागरूकता अत्यन्त महत्वपूर्ण है, परन्तु सरकार को भी कुछ नियमों और कानूनों में परिवर्तन करके यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कचरे में शामिल प्लास्टिक जैसे हानिकारक तत्वों के इस्तेमाल को कैसे नियंत्रित किया जाये।

विदित हो कि 21 जनवरी (गुरुवार) 2016 को ही पूर्व सपा सरकार ने पूरे उत्तर प्रदेश में पॉलिथीन की थैलियों पर पूरी तरह प्रतिबंध लागू कर दिया था। यह रोक हर तरह की प्लास्टिक थैलियों पर लागू किया गया था और इसमें पॉली प्रोपलीन (आम पॉलिथीन थैली) और कपड़े की तरह दिखने वाली प्लास्टिक की थैलियां भी शामिल थीं । यही नहीं निमंत्रण पत्र, किताबों और पत्रिकाओं को बांधने के लिए भी किसी भी तरह की पारदर्शी या दूसरी पॉलिथीन शीट या फिल्म के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई थी। जबकि प्लास्टिक के पैकेट में बिकने वाले खाने-पीने के सामान, तेल, दूध और बाकी खाने के सामान को इस प्रतिबंध से बाहर रखा गया है।

लेकिन पॉलीथिन के प्रतिबंध के बावजूद गोरखपुर क्षेत्र के साथ ही साथ पूरे प्रदेश में पॉलीथिन से बनी थैलियों का इस्तेमाल खूब देखने को मिल रहा है । लगभग अधिकांश दुकानों पर पॉलीथिन का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है । चाहे वो किराना की दुकान हो , गारमेंट्स की दुकान हो, पान की गुमटी या फिर मेडिकल स्टोर ही क्यों ना हो , हर एक जगह पालीथीन से बना थैला आसानी से मिल जायेगा । सपा सरकार का पॉलीथिन पर बैन पूरी तरह से विफल रहा । जिसका एक मुख्य कारण यह भी था कि इसका पालन कड़ाई से नही कराया गया ।


सत्ता परिवर्तन के बाद प्रदेश की कमान भाजपा के योगी सरकार के हाथों में आ गयी ।

देर से ही सही योगी सरकार ने पॉलीथिन से होने वाली गम्भीर समस्यओं को गम्भीरता से लेते हुए 15 जुलाई 2018 से पूरे प्रदेश में बैन लगा दिया है । यही नही पकड़े जाने पर 10 हजार रुपये के जुर्माने का भी प्रविधान कर रखा है । लेकिन मुद्दा ये है कि कंही सपा सरकार की तरह योगी सरकार का भी पॉलीथिन पर पुनः बैन की घोषणा विफल ना हो जाये ? फिलहाल यहाँ यह भी ध्यान देने की बात है कि सरकारें चाहे जितनी भी अच्छी से अच्छी घोषणाएं क्यों ना कर दें लेकिन उसको अमली जामा पहनाने वाले जिम्मेदारों की उदासीनता का ही देन है कि आज तक क्षेत्र में धड़ल्ले से पॉलीथिन से बने थैलों का खूब इस्तेमाल हो रहा है । यही आलम रहा तो हम पर्यावरण को सुरक्षित कैसे रख पाएंगे ? वंही नालियां, चौराहों आदि जगहों पर पॉलीथिन के ढेर देखने को मिलते हैं । क्या ऐसे ही स्वच्छ भारत की कल्पना हम सब करते हैं ? एक एक को जागरूक होना पड़ेगा और जिम्मेदारों को इसके प्रति पहल करना पड़ेगा वो भी नए सिरे से फिर कंही जा कर हम कुछ हद तक सफल हो पाएंगे ।


एक किराने वाले ने बताया कि साहब ! अगर बैन लग गया है तो अभी भी थोक में पॉलीथिन का थैला क्यों मिल रहा है ? हम लोग तो गोरखपुर ही शहर से ही खरीद कर लाते हैं । शहर में ही सब जिम्मेदार अधिकारी बैठे हैं फिर भी उन थोक विक्रेताओं पर नकेल लगाने में नाकाम हैं और हम लोगों को खामखा परेशान किया जाता है । अगर पॉलीथिन बनना ही बंद हो जाये तो फिर कंहा किसी को मिलने वाला है पॉलीथिन ?

क्यों है पॉलीथिन पर्यावरण के लिए खतरा

बाजार से घर पहुंचने के उपरांत जब इन बैगों को फेंक दिया जाता है तब पतली और हल्की होने के चलते प्लास्टिक बैग हवा में उड़ते हुए खेत खलिहान से लेकर नाले, तालाब, नदी तक फैलकर पर्यावरण के लिए गंभीर हो जाते हैं। अपने गाव शहर के कचरे के अंबारों को भी देखा जाये तो प्लास्टिक का कचरा ही अधिक नजर आएगा। उल्लेखनीय है कि बायो डिग्रेडेब्ल नहीं होने के कारण प्लास्टिक बैग वातावरण में आसानी से सड़कर विखंडित नहीं होते।

अगर हम पॉलीथिन का अध्ययन करें तो पाएंगे कि पॉलीथिन पेट्रोकेमिकल से बने होने के चलते इनके पूरी तरह से नष्ट होने में एक हजार वर्ष तक का समय लग जाता है। जिसका मतलब है इतने सालों तक ये अपने वर्तमान स्वरूप में नदी, नाले, पर्वत, समतल और सागर यानी संपूर्ण पर्यावरण को प्रदूषित करते रहते हैं। निकासी नालों में फंसकर जल जमाव यहा तक कि बाढ़ की स्थिति भी उत्पन्न कर देती है ये प्लास्टिक कचरा। जैसा सफाई कर्मी भी नालियों के जाम की एक प्रमुख कारण प्लास्टिक कचरे को ही मानते हैं। इतना ही नही कई जीव, पक्षी, मछलिया खाद्य पदार्थ के भ्रम में इन्हें निगलकर क्लॉगिंग के चलते मौत का शिकार हो जाते हैं। इनमें घरेलू मवेशी भी शामिल हैं। कई मौके पर तो छोटे बच्चों के इन प्लास्टिक बैग से खेलने के क्रम में दम घुटने से मौत के समाचार भी आते रहे हैं।

प्लास्टिक बैग के इन हानिकारक तथ्यों को देखते हुए प्रतिवर्ष 03 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस भी मनाया जाता है लेकिन पॉलीथिन प्रतिबंधित होने के बावजूद भी धड़ल्ले से प्रयोग में लायी जा रही है जो एक चिंता की बात है । फिलहाल इस ओर योगी सरकार की पहल सराहनीय है लेकिन ये भी नही भूलना चाहिए कि जब तक इसको कड़ाई से पालन करा कर लोगों के व्यवहार में परिवर्तन नही लाया जाता तब तक पॉलीथिन पर बैन एक जुमला ही साबित होगा । इसका जीता जागता उदाहरण हम सब ने पूर्व सरकार के दौरान देख चुके हैं ।

(अपनी राय अवश्य कमेंट बॉक्स में दें ।)

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