Wednesday, May 11, 2022

माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती

माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती,
यहाँ आदमी आदमी से जलता है..
दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर
जीवन है या नहीं
पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा कि जीवन में मंगल है या नही..
ज़िन्दगी में ना ज़ाने कौनसी बात "आख़री" होगी,
ना ज़ाने कौन सी रात "आख़री" होगी..
मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक दूसरे से,
ना जाने कौनसी "मुलाक़ात" आख़री होगी..
अगर ज़िन्दगी मे कुछ पाना हो तो
तरीके बदलो, ईरादे नही..
ग़ालिब ने खूब कहा है..:
ऐ चाँद तू किस मजहब का है,
ईद भी तेरी और करवाचौथ भी तेरा...

Monday, November 19, 2018

स्वर्गीय जमुना निषाद के आठवीं पुण्यतिथि पर विशेष

स्व0 जमुना निषाद का जीवन रहा है संघर्षशील

गणेश चन्द पाण्डेय
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तस्वीरों में : बाएं स्व0 जमुना निषाद,
घटना स्थल 
स्व. जमुना निषाद का जन्म सन 1953 में गोरखपुर के ग्रामसभा खुटहन खास में 1953 में हुआ था । मध्यम परिवार में जन्में स्व0 निषाद का जीवन बड़ा ही संघर्षमय रहा । निषाद बिरादरी व गरीबों के उत्थान के लिए वो आखरी सांस तक लड़ते रहे । स्व0 जमुना निषाद उत्तर प्रदेश विधानसभा में पिपराईच निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। वह निषाद समुदाय के रूप में शामिल हैं । जमुना निषाद मायावती सरकार में मत्स्य मंत्री बने, लेकिन एक पुलिसकर्मी की हत्या के आरोपों पर नाम आने के बाद उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा । 

स्व0 जमुना निषाद
जमुना निषाद ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में निषाद समुदाय और मुसलमानों का भी राजनीतिक समर्थन प्राप्त किया था । लगभग पंद्रह चुनावों में चुनाव लड़ने के बावजूद उन्हें केवल दो बार ही जीत का स्वाद चखने को मिला था । पहली बार ग्राम प्रधान के रूप में और फिर 2007 में राज्य विधान सभा में जीत हासिल की । ​​उन्होंने पहली बार 1985 में स्वतंत्र रूप से विधानसभा चुनावों में चुनाव लड़ा और फिर 1989 और 1991 में लेकिन तीनों मौकों पर उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा । इसके बाद उन्हें समाजवादी पार्टी (सपा) द्वारा मैदान में उतारा गया, और 1998 और 2004 में पूर्व सांसद योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध लोकसभा चुनाव लड़े, जिसमें फिर हार का मुंह देखना पड़ा ।

अपनी माता राजमती निषाद, पत्नी व
बच्चे केे साथ अमरेंद्र
वंही स्व0 जमुना निषाद 1996 में कई पार्टियों के साथ संबंधों को बदला लेकिन पिपराईच विधानसभा का चुनाव फिर से हार गए । 2002 में उन्हें अपना विधानसभा क्षेत्र बदलकर पनीयार से सपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ाया गया लेकिन फिर हार गए । अंततः उत्तर प्रदेश चुनाव 2007 में ग्राम प्रधान के रूप में जीता और राजनीतिज्ञ और शराब-व्यापारी जितेंद्र जैसवाल ऊर्फ पप्पू भैया को लगभग 6,000 वोटों की मार्जिन से हरा कर पिपराईच निर्वाचन क्षेत्र से जीत गए और बसपा नेता मायावती ने उन्हें मत्स्य मंत्री के रूप में नियुक्त किया।

पत्नी रीता व बच्चे के सात अमरेंद्र निषाद
8 जून 2008 की रात जमुना निषाद ने गोरखपुर के पास महाराजगंज जिले के कोटवाली पुलिस थाने में एक दलित लड़की पर बलात्कार के अपराधियों के खिलाफ सजा दिलाने के राजनैतिक षड्यंत्र के तहत उन्हें ही जेल भेज दिया गया। जिसके चलते उनको मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और जेल जाना पड़ा । वंही जमानत मिलने के बाद घर आते वक्त लखनऊ के सफदरगंज हाइवे पर सड़क दुर्घटना में 19 नवम्बर 2010 को मृत्यु हो गयी । बतादें की इनकी सड़क दुर्घटना को भी षड्यंत्र माना जाता है । वंही स्व0 जमुना निषाद की धर्मपत्नी राजमती निषाद पूर्व विधायक पिपराइच और एकलौते सुपुत्र अमरेंद्र निषाद पिता के पद चिन्हों पर चलते हुए राजनीतिक जीवन को अपना लिया है । तो वंही उनकी पत्नी रीता निषाद कदम से कदम मिला करके साथ दे रही हैं ।

Tuesday, July 31, 2018

सर्व सिद्धिदायक सावन का सोमवार, करें पूजा-अर्चना



इस सावन पड़ रहे हैं चार सोमवार जो देंगे मनचाहा वरदान

गणेश पाण्डेय 'राज'
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हिन्दू धर्म, अनेक मान्यताओं और विभिन्न प्रकार के संकलन से बना है। हिन्दू धर्म के अनुयायी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ़ रहते हैं कि हिन्दू जीवनशैली में क्या चीज अनिवार्य है और क्या पूरी तरह वर्जित। यही वजह है कि अधिकांश हिंदू परिवारों में नीति-नियमों का भरपूर पालन किया जाता है। हिन्दू परिवारों में सावन को बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण महीने के तौर पर देखा जाता है। इसकी महत्ता इसी बात से समझी जा सकती है कि सावन के माह में मांसाहार पूरी तरह वर्जित होता है और शाकाहार को ही उपयुक्त माना गया है। इसके अलावा मदिरा पान भी निषेध माना गया है।

हिन्दू धर्मों में सावन का महीना सबसे ज्यादा पुण्यदायी माना गया है। ऐसे में यदि विशेष योगों का योग भी बन जाए तो सोने पर सुहागा ही होता है। कुछ ऐसा ही होने वाला है 28 जुलाई से शुरू हो रहे सावन महीने में। इस बार देवों के देव महादेव भगवान शंकर की उपासना के लिए महत्वपूर्ण सावन माह में कई विशेष संयोग पड़ रहे हैं। हर सोमवार को साधना का विशेष संयोग है। भक्तों ने पहले दिन ही कांवड़ यात्रा, रुद्राभिषेक और जलाभिषेक की तैयारी की है। ज्योतिर्विदों के अनुसार इस बार सावन में शिव की पूजा अधिक फलदायी होगी। 

वंही सभी शिवालयों में विशेष तैयारी पूरी कर ली गयी है । शिव मंदिरों में सावन के पहले सोमवार को भोर से ही भक्तों का तांता लगा रहा । यंहा बतादें कि श्रावण मास में इस बार सावन का महीना 28 या 29 दिनों का नहीं रहेगा बल्कि पूरे 30 दिनों तक चलेगा। ऐसा संयोग 19 साल बाद बन रहा है। दरअसल इस बार का सावन 30 दिनों का होने के पीछे अधिकमास पड़ने के कारण हुआ है। सबसे खास बात यह है कि इस सावन माह में 4 सोमवार पड़ रहा है । बहुत से लोग सावन या श्रावण के महीने में आने वाले पहले सोमवार से ही 16 सोमवार व्रत की शुरुआत करते हैं। जो सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है । इन चारों सोमवार जगत गुरु भगवान शिव का पूजन और शिवालयों में रुद्राभिषेक होगा। ऐसी मान्यता है कि सावन में सोमवार को व्रत रखने और शिवलिंग पर जल चढ़ाने से घर में सुख-समृद्धिआती है। भोलेनाथ इतने भोले हैं कि मात्र 'ॐ नमः शिवाय' कहने मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं ।

सावन के महीने में व्रत रखने का भी विशेष महत्व दर्शाया गया है। मान्यता है कि कुंवारी लड़कियां अगर इस पूरे महीने व्रत रखती हैं तो उन्हें उनकी पसंद का जीवनसाथी मिलता है। इसके पीछे भी एक कथा मौजूद है जो शिव और पार्वती से जुड़ी है। पिता दक्ष द्वारा अपने पति का अपमान होता देख सती ने आत्मदाह कर लिया था। पार्वती के रूप में सती ने पुनर्जन्म लिया और शिव को अपना बनाने के लिए उन्होंने सावन के सभी सोमवार का व्रत रखा। फलस्वरूप उन्हें भगवान शिव पति रूप में मिले। इसके साथ सावन में व्रत रखने से भोले बाबा की कृपा बनी रहती है ।

Thursday, July 26, 2018

जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।

बहुत सुंदर कथा .......

गणेश पाण्डेय 'राज'

दोस्तों ! आज इस अत्याधुनिक युग में कोई बिना स्वार्थ के कुछ भी नही करता और ना ही करना चाहता है । हम स्वयं भगवान की आराधना इस वजह से करते हैं कि हमारे साथ जुड़े लोगों की भगवान अच्छा करें । साथ ही ये अपेक्षा रखते हैं कि हमारे प्रार्थना के बदले कुछ ना कुछ अच्छा होगा । लेकिन ये भूल जाते हैं कि भगवान अंतर्यामी है । उससे कुछ कहने या मांगने की जरूरत नही । वो (भगवान) अपने बच्चों से सदैव प्रेम करता है और उनकी रक्षा करता है । बशर्ते हम सदमार्ग पर चलें । अपने कर्मों पर विश्वास करें । हम सब ये भी जानते हैं कि बुरा करने पर परिणाम बुरा ही होगा और अच्छा करने पर परिणाम अच्छा ही होगा । कर्मों का फल तो भुगतना ही पड़ेगा ..देर-सबेर ।

मित्रों ! आज जो कहानी आप सब के सामने रख रहे हैं वो जीवन को सुखमय और हमें निस्वार्थ प्रेम व कर्म करने की प्रेरणा देता है । जीवन को सदमार्ग पर ले जाएगा ...

एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..।

वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।

एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"

दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा....

वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"

वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी कि -"कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"

एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली -"मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी।"

और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और वह रुक गई ओर वह बोली - "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे की आँच में जला दिया..। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।

हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेके, "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।

इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।

हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।

ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..।

वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।

जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।

लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.. उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया.. भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे.. मैंने उससे खाने को कुछ माँगा.. उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"

जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लिया.....।

उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला कर नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?

और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था -
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा,और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ।"

इस कहानी का उद्देश तो समझ ही गये होंगे आप सब .... मित्रों हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..।
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मैं आपसे दावे के साथ कह सकता हूँ कि ये बहुत से लोगों के जीवन को छुएगी और अनेक लोगों को बदलेगी.🙏😊

Sunday, July 15, 2018

पॉलीथिन बैग बैन : कंही फिर ना बन जाये मजाक !

हाल-ए-पॉलीथिन

पॉलीथिन बैग बैन या मजाक, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी लगाया था बैन


- 21 जनवरी 2016 को सपा सरकार ने भी लगाई थी पॉलीथिन बैग पर पूर्ण प्रतिबंध, जिसका नही देखने को मिला असर । 15 जुलाई 2018 को योगी सरकार ने पुनः लगाई पॉलीथिन बैग के प्रयोग पर बैन, कितना होगा असर ?

- छोटे बड़े सभी दुकानों पर दिख रही पॉलीथिन बैग

गणेश पाण्डेय 'राज'
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विकसित देशों के नागरिक स्वच्छता के प्रति अधिक सजग रहते हैं। विकसित देशों में कहीं सड़कों पर कचरा फैला हुआ नहीं दिखाई देता। कचरे की समस्या विकासशील तथा अविकसित देशों में अधिक है। भारत अभी भी एक विकासशील देश ही है। भारत के लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता अब धीरे-धीरे बढ़ रही है। प्रधानमंत्री के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का असर अगले कुछ वर्षों में अवश्य नजर आने लगेगा। नि:संदेह जागरूकता अत्यन्त महत्वपूर्ण है, परन्तु सरकार को भी कुछ नियमों और कानूनों में परिवर्तन करके यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कचरे में शामिल प्लास्टिक जैसे हानिकारक तत्वों के इस्तेमाल को कैसे नियंत्रित किया जाये।

विदित हो कि 21 जनवरी (गुरुवार) 2016 को ही पूर्व सपा सरकार ने पूरे उत्तर प्रदेश में पॉलिथीन की थैलियों पर पूरी तरह प्रतिबंध लागू कर दिया था। यह रोक हर तरह की प्लास्टिक थैलियों पर लागू किया गया था और इसमें पॉली प्रोपलीन (आम पॉलिथीन थैली) और कपड़े की तरह दिखने वाली प्लास्टिक की थैलियां भी शामिल थीं । यही नहीं निमंत्रण पत्र, किताबों और पत्रिकाओं को बांधने के लिए भी किसी भी तरह की पारदर्शी या दूसरी पॉलिथीन शीट या फिल्म के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई थी। जबकि प्लास्टिक के पैकेट में बिकने वाले खाने-पीने के सामान, तेल, दूध और बाकी खाने के सामान को इस प्रतिबंध से बाहर रखा गया है।

लेकिन पॉलीथिन के प्रतिबंध के बावजूद गोरखपुर क्षेत्र के साथ ही साथ पूरे प्रदेश में पॉलीथिन से बनी थैलियों का इस्तेमाल खूब देखने को मिल रहा है । लगभग अधिकांश दुकानों पर पॉलीथिन का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है । चाहे वो किराना की दुकान हो , गारमेंट्स की दुकान हो, पान की गुमटी या फिर मेडिकल स्टोर ही क्यों ना हो , हर एक जगह पालीथीन से बना थैला आसानी से मिल जायेगा । सपा सरकार का पॉलीथिन पर बैन पूरी तरह से विफल रहा । जिसका एक मुख्य कारण यह भी था कि इसका पालन कड़ाई से नही कराया गया ।


सत्ता परिवर्तन के बाद प्रदेश की कमान भाजपा के योगी सरकार के हाथों में आ गयी ।

देर से ही सही योगी सरकार ने पॉलीथिन से होने वाली गम्भीर समस्यओं को गम्भीरता से लेते हुए 15 जुलाई 2018 से पूरे प्रदेश में बैन लगा दिया है । यही नही पकड़े जाने पर 10 हजार रुपये के जुर्माने का भी प्रविधान कर रखा है । लेकिन मुद्दा ये है कि कंही सपा सरकार की तरह योगी सरकार का भी पॉलीथिन पर पुनः बैन की घोषणा विफल ना हो जाये ? फिलहाल यहाँ यह भी ध्यान देने की बात है कि सरकारें चाहे जितनी भी अच्छी से अच्छी घोषणाएं क्यों ना कर दें लेकिन उसको अमली जामा पहनाने वाले जिम्मेदारों की उदासीनता का ही देन है कि आज तक क्षेत्र में धड़ल्ले से पॉलीथिन से बने थैलों का खूब इस्तेमाल हो रहा है । यही आलम रहा तो हम पर्यावरण को सुरक्षित कैसे रख पाएंगे ? वंही नालियां, चौराहों आदि जगहों पर पॉलीथिन के ढेर देखने को मिलते हैं । क्या ऐसे ही स्वच्छ भारत की कल्पना हम सब करते हैं ? एक एक को जागरूक होना पड़ेगा और जिम्मेदारों को इसके प्रति पहल करना पड़ेगा वो भी नए सिरे से फिर कंही जा कर हम कुछ हद तक सफल हो पाएंगे ।


एक किराने वाले ने बताया कि साहब ! अगर बैन लग गया है तो अभी भी थोक में पॉलीथिन का थैला क्यों मिल रहा है ? हम लोग तो गोरखपुर ही शहर से ही खरीद कर लाते हैं । शहर में ही सब जिम्मेदार अधिकारी बैठे हैं फिर भी उन थोक विक्रेताओं पर नकेल लगाने में नाकाम हैं और हम लोगों को खामखा परेशान किया जाता है । अगर पॉलीथिन बनना ही बंद हो जाये तो फिर कंहा किसी को मिलने वाला है पॉलीथिन ?

क्यों है पॉलीथिन पर्यावरण के लिए खतरा

बाजार से घर पहुंचने के उपरांत जब इन बैगों को फेंक दिया जाता है तब पतली और हल्की होने के चलते प्लास्टिक बैग हवा में उड़ते हुए खेत खलिहान से लेकर नाले, तालाब, नदी तक फैलकर पर्यावरण के लिए गंभीर हो जाते हैं। अपने गाव शहर के कचरे के अंबारों को भी देखा जाये तो प्लास्टिक का कचरा ही अधिक नजर आएगा। उल्लेखनीय है कि बायो डिग्रेडेब्ल नहीं होने के कारण प्लास्टिक बैग वातावरण में आसानी से सड़कर विखंडित नहीं होते।

अगर हम पॉलीथिन का अध्ययन करें तो पाएंगे कि पॉलीथिन पेट्रोकेमिकल से बने होने के चलते इनके पूरी तरह से नष्ट होने में एक हजार वर्ष तक का समय लग जाता है। जिसका मतलब है इतने सालों तक ये अपने वर्तमान स्वरूप में नदी, नाले, पर्वत, समतल और सागर यानी संपूर्ण पर्यावरण को प्रदूषित करते रहते हैं। निकासी नालों में फंसकर जल जमाव यहा तक कि बाढ़ की स्थिति भी उत्पन्न कर देती है ये प्लास्टिक कचरा। जैसा सफाई कर्मी भी नालियों के जाम की एक प्रमुख कारण प्लास्टिक कचरे को ही मानते हैं। इतना ही नही कई जीव, पक्षी, मछलिया खाद्य पदार्थ के भ्रम में इन्हें निगलकर क्लॉगिंग के चलते मौत का शिकार हो जाते हैं। इनमें घरेलू मवेशी भी शामिल हैं। कई मौके पर तो छोटे बच्चों के इन प्लास्टिक बैग से खेलने के क्रम में दम घुटने से मौत के समाचार भी आते रहे हैं।

प्लास्टिक बैग के इन हानिकारक तथ्यों को देखते हुए प्रतिवर्ष 03 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस भी मनाया जाता है लेकिन पॉलीथिन प्रतिबंधित होने के बावजूद भी धड़ल्ले से प्रयोग में लायी जा रही है जो एक चिंता की बात है । फिलहाल इस ओर योगी सरकार की पहल सराहनीय है लेकिन ये भी नही भूलना चाहिए कि जब तक इसको कड़ाई से पालन करा कर लोगों के व्यवहार में परिवर्तन नही लाया जाता तब तक पॉलीथिन पर बैन एक जुमला ही साबित होगा । इसका जीता जागता उदाहरण हम सब ने पूर्व सरकार के दौरान देख चुके हैं ।

(अपनी राय अवश्य कमेंट बॉक्स में दें ।)

Sunday, June 10, 2018

पॉजिटिव खबर : जो आपके चेहरे पर मुस्कान ला देगी ।


संकल्प ने बदली सूरत

सरकारी विद्यालय या कोई कान्वेंट स्कूल , कन्फ्यूज हो जाएंगे आप

गणेश पाण्डेय 'राज'
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कहते हैं कि अगर मन में जज़्बा हो कुछ कर दिखाने की तो सारी कायनात झुक जाती है उसे बनाने में । बस इच्छा शक्ति प्रबल होनी चाहिए फिर आप जो चाहते हैं वो आपकी मुट्ठी में होगी । एक शायर की ये चन्द पंक्तियां भी इसी ओर इशारा करती हैं - "कौन कहता है कि आसमान में छेद नही होती, एक पत्थर तबियत से तो उछालो यारों" । कहने का तात्पर्य है कि जंहा चाह है वंही राह है । संकल्प से बढ़ कर कुछ भी नही । चलिए ज्यादे भूमिका ना बांधते हुए सीधे मुद्दे पर आते हैं ।


भारत देश के सरकारी विद्यालयों से हम सब बखूबी परिचित हैं । खास करके भवन से लगायत वँहा की शिक्षा व्यवस्था की । कहने में कोई संकोच नही है कि प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था का स्तर दिन ब दिन गिरता जा रहा है । एक जमाना था कि प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को बैठने के लिए जगह ही कम पड़ती थी और आज प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की संख्या नाम मात्र है । वैसे तो सरकार इन विद्यालयों को प्रमोट करने के लिए काफी प्रयासरत है लेकिन उसका सारा प्रयास विफल है । जिन सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता को बनाये रखने की बातें आये दिन सरकारें तो करती हैं लेकिन असल मुद्दे पर चर्चा तक नही करती हैं । देश के मुख्यमंत्रियों, सांसदों, विधायकों, अधिकारियों या इनके रिश्तेदारों के एक भी बच्चे आपको इन स्कूलों में पढ़ते हुए नही मिलेंगे अगर मिल गए तो मुझे जरूर बताना !  जबकि यही नेता और अधिकारी आये दिन सरकारी स्कूलों का निरीक्षण करते रहते हैं ।


उत्तर प्रदेश सरकार इस समय उन विद्यालयों पर नकेल लगाने की कोशिश कर रही है जो मान्यता विहीन है । लेकिन प्राथमिक विद्यालयों व उच्च माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षा गुणवत्ता पर ध्यान नही दे पा रही है । इन सरकारी विद्यालयों में आपको बच्चों की संख्याओं की स्थिति देख दंग रह जाएंगे । सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में आये दिन गिरावट होने के कारण सरकारी विद्यालयों में अभिभावक अपने बच्चों को नही भेजना चाह रहे । चाहे वो गरीब का बच्चा ही क्यों ना हो ।

शिक्षा की महत्ता क्या है आप को उन गांवों में भी देखने को मिलेगा जंहा एक ठेला चलाने वाला अभिभावक भी अपने बच्चे को कान्वेंट स्कूलों में भेजने के लिए दिन रात मेहनत करता है । सोचने वाली बात है कि सरकारी विद्यालयों में सारी सुविधाएं मुफ्त होने के बावजूद अभिभावक अपने बच्चों को क्यों नही भेज रहा है ? जबकि इन विद्यालयों में प्रशिक्षित अध्यापक उपलब्ध हैं । फिर भी छात्रों के नामांकन और उपस्थिति में जमीन आसमान का अंतर देखने को मिलता है । वंही ध्यान देने वाली बात है कि सरकार आज जिन मान्यताविहीन विद्यालयों को बन्द करवा रही है उसमें अध्यापन कार्य करने वालों की पगार सरकारी विद्यालय के अध्यापक के एक चौथाई भी नही है और ना ही सरकारी अध्यापक की तरह क्वालिफिकेशन । फिर भी वँहा बच्चों की संख्या काफी अच्छी देखने को मिलती है । ...इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारी विद्यालयों के अध्यापक ना ही अपने जिम्मेदारी का सही ढंग से निर्वहन कर रहे हैं और ना ही तो इन विद्यालयों में कोई सिस्टम ही ठीक ढंग से कार्य कर रहा है । ऐसे में एक खबर आप को जरूर कुछ राहत देगी ।


जिस खबर की मैं चर्चा करने जा रहा हूँ वो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर के भटहट विकास खंड के प्राथमिक विद्यालय कैथवलिया से है । यंहा के ग्राम प्रधान ने कैथवलिया प्राथमिक विद्यालय को कान्वेंट स्कूल बना दिया है । योगी सरकार के मंशा के अनुरूप भटहट क्षेत्र का प्राथमिक विद्यालय कैथवलिया विद्यालय परिवार व ग्राम प्रधान के सकारात्मक सोच के बदौलत कान्वेंट स्कूल को भी मात दे दिया है । पूरा विद्यालय परिसर टाइल्स व अत्याधुनिक संसाधन से युक्त हो चुका है । विद्यालय परिवार ग्राम प्रधान को धन्यवाद देते हुए संकल्प लिया है कि प्रधान ने बदली विद्यालय की सूरत से अब हम सब मिलकर बच्चों का सूरत बदल देंगे । वंही अब ये विद्यालय पूरे ब्लाक क्षेत्र के साथ जनपद में चर्चा का विषय भी बन गया है ।


भटहट ब्लाक क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय कैथवलिया में सत्र 2017 - 18 के समापन के दौरान आयोजित शिक्षक - अभिभावक बैठक में विद्यालय के प्रधानाध्यापक ओंकारनाथ सिंह व शिक्षकों ने विद्यालय भवन व अन्य संसाधनों के भारी कमी से ग्राम प्रधान विन्देश्वरी गुप्ता को अवगत कराते हुए बेहतर शैक्षणिक माहौल स्थापित करने का अनुरोध किया था । जिस पर ग्राम प्रधान ने शिक्षकों से संकल्प कराया कि मैं विद्यालय परिसर का कायाकल्प कर दूंगा बशर्ते आप लोग बच्चों के सूरत बदलने हेतु संकल्पित होवें । शिक्षकगण ओंकारनाथ सिंह, रमेश मणि त्रिपाठ , रचना श्रीवास्तवा, ऋतु कोरी शिक्षामित्रगण फखरुद्दीन खान व कविता साहनी ने बैठक में पूरे ग्रामसभा के सामने बच्चों का सूरत बदलने का संकल्प लिया ।


फिर क्या था ग्रामप्रधान विन्देश्वरी गुप्ता ने विद्यालय का छत व फर्श की मरम्मत कराने के साथ ही कक्षा कक्ष व पूरे परिसर में टाईल्स लगवाया। बच्चों के खेल स्थान पर इंटरलॉकिंग, शौचालय को दुरुस्त कराने के बाद पूरे विद्यालय का डिजाइन पेंटिंग करा डाली । जिस पर शिक्षकों ने ग्रामप्रधान की उपस्थिति में वचन दिया कि आपने विद्यालय की सूरत बदली है अब हम बच्चों का सूरत बदल कर रहेंगे । वंही जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी भुपेंद्रनारायण सिंह ने ग्रामप्रधान व विद्यालय परिवार को इस सराहनीय कार्य की प्रशंसा की है और बेहतर शैक्षणिक माहौल स्थापित करने का आग्रह किया है तथा अन्य प्राथमिक विद्यालयों को भी इससे सीख लेने की अपील की है ।


अगर इसी प्रकार धीरे धीरे ही सही सरकारी विद्यालयों की सूरत बदली जाय तो वो दिन दूर नही जब सरकारी विद्यालयों में बच्चों की संख्या देखने लायक होगी । लेकिन सरकार को शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना होगा । तभी जा कर के हमारे बच्चों का भविष्य स्वर्णिम हो सकेगा ।



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माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती

माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती, यहाँ आदमी आदमी से जलता है.. दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं...